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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१४ ..सप्रकृतीशी ज्ञानवादी अज्ञानवादिनामनर्थ दर्शयति- 'एवं. सकाइ, इत्यादि । ... एवं तत्काई साहिता, धम्माधम्मे अकोविया । दुक्ख तेनाइ तुटुंति, सउणी पंजरं जहा ॥२२॥ छाया-... एवं तः साधयन्तः धर्माधर्मयोरकोविदाः । दुखं तेनाऽति त्रोटयन्ति शकुनिः पंजरं यथा ॥२२॥ .. अन्वयार्थ:(एवं) एवम्-उक्तप्रकारेण (तक्काई) तर्कया-तर्केण (साहिता) साधयन्तुः स्वकीयं मतम्-"अज्ञानवाद एव श्रेयान् " इत्याकरकं प्रतिपादयन्तोऽज्ञानिन (धम्माधम्मे) धर्माधर्मयोः (अकोविया) अकोविदा: अज्ञातारः (ते) ते अज्ञानवा ____ज्ञानवादी अज्ञानवादियों को होने वाला अनर्थ दिखलाते हैं-'एवं तक्काई, इत्यादि । शब्दार्थ-एवं-एवम्' इसीप्रकार 'तक्काई-तर्कया' तर्कोसे 'साहिता-साधयन्त अपने मतको मोक्षप्रदसिद्धकरते हुए 'धम्माधम्मे-धर्माधर्मयोः' धर्म एवं अषमें में 'अकोविया--अकोविदाः' नजानने वाले 'ते-ते' अज्ञानवादी 'दुकावं दुःखम् दुःखको 'नाइ तुईति-नाति त्रोटयन्ति' अत्यंत नहीं तोडसकते हैं 'जहा--यथा' जैसे 'सउणी-शकुनी' पक्षी 'पंजरं--परं' पीजडेको नहीं तोडसकते हैं ॥ २२ ॥ -अन्वयार्थउक्त प्रकार से तर्क के द्वारा 'अज्ञान ही श्रेयस्कर हैं अपने इन मत का समर्थन करते हुए अज्ञानवादी धर्मऔर अधर्म के विषय में नासमझ हैं અજ્ઞાનવાદીઓને ક્યા કયાં અનિષ્ટોને અનુભવ કરે પડે છે, તે હવે સૂત્રકાર ५४८ ४२ छ- "एवं तकाई" त्या ... हाथ-एवं-एवम्' मे प्रमाणे 'तकाई-तर्कया' तथा 'साहिता-साधयन्तः' पाताना मतने भोक्ष प्रसिद्ध४२ताया 'ध धम्मे-धर्माधर्म या' धर्म व अधम भां 'अकोविया-अकोविदाः न पा 'ते-तें' अज्ञानपाहि 'दुक्न-दुक्खम्' भने 'नाइतुति-नाति त्रोटयन्ति' अत्यंत रीत तोडी शता नथी, 'जहा-यथा सेभ 'सउणी -शकुनी पक्षी पिंजर पजरम्' पाराने तोडी शता नथी तेभ. ॥२२॥ -भ-क्याथપૂર્વોકત તર્ક દ્વારા “અજ્ઞાન જ શ્રેયસ્કર છે.” આ પ્રકારના પિતાના મતનું સમર્થન કરતા તે અજ્ઞાનવાદીઓ ધર્મ અને અધર્મના ખરા સ્વરૂપને જાણતા નથી. તેનું શું For Private And Personal Use Only
SR No.020778
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size13 MB
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