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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयार्थबोधिनी टीका ज्ञानस्य मङ्गलत्वप्रतिपादनम् अत्र प्रकृतसूत्रे 'बुझिजति' पदेन ज्ञानरूपमङ्गलप्रदर्शनपूर्वकं सूत्रमुच्चारणीयम् । तच्चेदम्-'बुझिजत्ति' इत्यादि । बुझिज-त्ति तिरुट्टिजा बंधणं परिजाणिया । किमाह बंधणं वीरो, किं वा जाणं तिउद्दई ॥१॥ चित्तमंतमचित्तं वा, परिगिझ किसामवि ।। १९ २० २१ २२ २३ २४ २५ । अन्नं वा अणुजाणाइ, एवं दुक्खा ण मुचई ॥२॥ छाया- बुध्येतेति त्रोटयेत्, बन्धनं परिज्ञाय । किमाह बंधनं वीरः, किं वा जानन् त्रुटयति ॥१॥ चित्तवन्तमचित्तं वा, परिगृह्य कृशमपि । अन्यं वा अनुजानाति, एवं दुःखात् न मुच्यते ॥२॥ अन्वयार्थ-'त्ति' इति “पड्जीवनिकायवधेन बन्धो भवति' इत्याचाराङ्गे प्रोसं बन्धनस्वरूपम् (बुज्झिज्ज) बुध्येत जानीयात् (परिजाणिया) परिज्ञाय=ज्ञ परिक्षया ज्ञात्वा (बंधणं) बन्धनम् अष्टविधकर्मबन्धं (तिउट्टिजा) त्रोटयेत् विनाशयेत् प्रकृत सूत्र में "बुझिज्जत्ति" पद से ज्ञानरूप मंगल को प्रदर्शित किया है। अब सूत्रकार निम्नोक्त सूत्र कहते हैं—“बुझिज्जत्ति" इत्यादि । शब्दार्थ-(बुझिजत्ति) मनुष्यको बोध प्राप्त करना चाहिये (बंधणं परिजाणिया) वन्धनको जानकर (तिउट्टिजा) उसे तोडना चाहिये (वीरो) वीरप्रभुने (बंधणं किमाह) बंधनका स्वरूप क्या कहा है ? (वा) और (किं जाणं) क्या जानता हुआ पुरुष (तिउट्टइ) बंधनको तोडता है ? . प्रकृत सूत्रमा "बुज्झिज्जत्ति" ३५ ५४ २॥ शान ३५ भने प्रति ४२१ामा भाव्यु छ. वे सूत्र।२ निये प्रभाधेनु सूत्र हे छ.-बुझित्ति त्या___Aal-(बुझिजत्ति) माणुसे माथ भेगा ये (बंधणं परिजाणिया) मनने समलने (तिउट्टिजा) तेने तोये (वीरो) २५ मे (बंधणं किमाह) मधन २१३५ शुध्धु छ ? (वा) १५१॥ (किं जाणं) ५३५ शु Meta (तिउद्दइ) બંધનને તેડે છે. For Private And Personal Use Only
SR No.020778
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size13 MB
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