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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २३४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रकृताङ्गसूत्रे - टीका 6 अगार ' - मिति अगारं गृहम् तस्मिन् 'आवसंतावि' आवसन्तोऽपि वासं कुर्वन्तोऽपि । अत्र अगारपदं गृहमध्ये विद्यमान कलत्रपुत्रादीनामुपलक्षणत्वात् मचा क्रोशन्तीतिवत् लाक्षणिकम् । तथाचाऽगारे वसन्तः कलत्रपुत्रादिना सह वासं कुर्वन्त इत्यर्थः संपद्यते । तदुक्तम् - " न गृहं गृहमित्याहु गृहिणी गृहमुच्यते " । इति नीत्या गृहे स्थित इत्यस्य गृहस्थितपुत्रभार्यादिषु स्नेहं कुर्वाणा इत्यर्थः संपद्यते । 'आरण्णावावि, इति आरण्यावापि अरण्ये निवसन्तोऽपि तापसाः वानप्रस्था इति यावत् । तथा 'पव्वया' प्रवजिताः सन्न्यासिन इत्यर्थः । अथवा ' पार्वताः' इतिच्छायापक्षे पर्वतवासिनः । एषु ये केचन ' इदं दर्शनम् ' आवण्णा' आपन्ना प्राप्ताः सन्तः सव्वदुक्खा सर्वदुःखात् सर्वेभ्यः सांसारिकदुःखेभ्यः ' विमुच्चर' विमुच्यन्ते-विमुक्ता भवन्ति । 1 , -:टीकार्थ : अगार का अर्थ है घर । यहाँ अगार पद गृह में रहने वाले पत्नी पुत्र आदि का सूचक हैं । "माचे शोर कर रहे हैं" इसके समान यह एक लाक्षणिक कथन है । अतएव " घर में रहते हुए का अर्थ है कलत्रपुत्र आदि के साथ निवास करते हुए । कहा भी है " न गृहं गृहमित्याहु गृहिणी गृहमुच्यते इत्यादि । "गृह गृह नहीं कहलाता, वास्तव में गृहिणी गृह कहलाती है" । इस कथन के अनुसार गृह में स्थित का अभिप्राय है गृह में स्थित पुत्र पत्नी आदि पर स्नेह करते हुए । अरण्य का अर्थ अरण्य - वन में निवास करने वाले तापस या वानप्रस्थ भी कहलाते हैं । प्रव्रजित संन्यासी को कहते हैं । मूल में जो "पव्या" पाठ है उसका अर्थ पार्वत अर्थात् पर्वतवासी भी हो सकता है । ટીકા " अगार" आा पहनो अर्थ गृह थाय छे. अहीं अगर पह घरमा रहेनारा पत्नी, पुत्र माहिनु सूयः छे. “भयो (भायो) मोझे छे," मा थनना भेषु आ साक्षि કથન છે. તેથી ઘરમાં રહેનારા ના અર્થ આ પ્રમાણે સમજવા “પુત્ર, પુત્રી, પત્ની આદિની साथै निवास उरतो” म्ह्यं यछे जे "न गृहं गृहमित्याहु" इत्याहि ઘરને ગૃહ કહેવાતું નથી, વાસ્તવિક રૂપે તે ગૃહિણીને જ ગૃહ કહેવાય છે,” મા કથન અનુસાર ઘરમાં રહેતેા” એટલે પુત્ર, પુત્રી, પત્ની આદિ પર સ્નેહભાવ રાખતા” For Private And Personal Use Only "मरएय” भेटले वन, मने “आरएय" भेटले वनमां निवास अरनार, तेने तापस अथवा वानप्रस्थ पड़े छे. सन्यासीने 'प्रवति' हे छे. भूग सूत्रमां ने "पव्वया" આ પદ વપરાયુ છે. તેના અર્થ પાવત એટલે કે પર્વતવાસી પણ થઇ શકે છે.
SR No.020778
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size13 MB
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