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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रकृताङ्गसूत्रो अधासत्कार्यवादि बौद्धमतं दर्शयति-पंचखंधे इत्यादि । मूलम् पंच खंधे वयंतगे वोलो उ खणजोइणो अण्णो अण्णष्णो णेवाहु हेउयं च अहेउयं ॥१७॥ -छायापश्च स्कन्धान् वदन्त्येके वालास्तु क्षणयोगिनः । अन्यमनन्यं नैवाहु है तुकं च अहेतुकम् ॥१७॥ अन्वयार्थ(एगे) एके केचन (बाला उ) बालास्तु सदसद्विवेकविकला बौद्धमतानु यायिनः (पंच) पञ्चसंख्यकान् (खधे) स्कन्धान रूप-वेदना विज्ञान-सज्ञाहोती है तो सर्वथा सत् कैसे हो सकता है ? अतएव आत्मा को कथंचित् नित्य और कथंचित् अनित्य और सत् असत्-कार्यवाद स्वीकार करना चाहिए अर्थात् द्रव्य रूप से सत् और पर्याय रूप से असत् कार्य की उत्पत्ति होती है ।।१६।। ___अब असत्कार्यवादी बौद्धमत को दिखलाते हैं-"पंचखंधे" इत्यादि शब्दार्थ--'एगे-एके कोई 'बाला उ-बालस्तु अज्ञानी पच-पञ्च पांच 'खधेस्कन्धान्' ध 'वयंति-चम्ति' बताते हैं-कहते हैं 'खणजोइणो क्षणयोगिनः' क्षणमात्ररहने वाले हैं 'अण्णो-अन्यम्' पांच महाभूतों से अन्य 'अणण्णो-अनन्यम्' तथा इससे अभिन्न 'हेउय-हेतुक सकारण उत्पन्न 'च-च' तथा 'अहेउयं-अहेतुक" दिनाकरण उत्पन्न आत्मा ‘णेवाहु-नैवाहुः' नहीं होता हैं ॥१७॥ -अन्वयार्थकोई कोई सत् असत् के विवेकसे रहित बौद्धमत के अनुयायी अज्ञानी पांच स्कन्ध कहते हैं-(१) रूप (२) वेदना (३) विज्ञान (४) संज्ञा और હાય, તે સર્વથા સત્ કેવી રીતે હોઈ શકે ? તેથી જ આત્માને અમુક દૃષ્ટિએ નિત્ય અને અમુક દૃષ્ટિએ અનિત્ય તથા સત્--અસત્ કાર્યવાદ સ્વીકાર કરવો જોઈએ. એટલે કે દ્રવ્યની અપેક્ષાએ સત્ અને પર્યાયની અપેક્ષાએ અસત્ કાર્યની ઊત્પત્તિ થાય છે. ગાથા ૧૬ . हवे सूत्र॥२ २१४ायपाहो मौद्धिमतनु विवेचन ४३ .- “पंच खधे” त्यादि शहा – 'एगे-एके 'बाला उ-बालस्तु' जानी 'एच-पञ्च' iय 'खधेसाधान्' २४५ 'वयंति-वदन्ति' ४ छ 'अण्णो-अन्यम्' लय भायाभू शिवाय अायो- अमन्यम्' यानाथी मन्य हे उय-हेतुकम्' सा पान 'य-च' तथा 'अहे. उय-अहेतुक' १२९विनापन्न मात्मा ‘णेशाहु-नेबाहुः खाता नथी. ॥१७॥ अन्वयार्थ તુ વિવેકથી રહિત અને બદ્ધમતના અનુયાયી એવા કઈ હોઈ અજ્ઞાની લોકો પાંચ રડીનું પ્રતિપાદન કરે છે. તે પાંચ સ્કલ્પના નામ નીચે પ્રમાણે છે. (૧) For Private And Personal Use Only
SR No.020778
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size13 MB
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