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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयार्थ घोधिनी टीका प्र. श्रु. अ.१ अकारकवादिमतनिरसनम् २०० व्यापकश्च कथञ्चित् , इति, अन्ततो गत्वाऽनेकान्तवादपादावलंबनमेव शरणं सर्वेषामिति स्याद्वादमार्गों निराकुल इति ॥१४॥ समाप्य चतुर्दशगाथाव्याख्यानम् , इदानीमवशिष्टमकारकवादिमतं निराकर्तुमाह सूत्रकारः—'संती' त्यादि ।। मूलम् संति पचं महन्भूया इहमेगेसि माहिया । आयछट्टो पुणो आहु आया लोगे य सासए ॥१५॥ छायासन्ति पञ्च महाभूतानि इहेकेषामाख्यातानि । आत्मा पष्ठः पुनराहु रात्मा लोकश्च शाश्वतः ॥१५ अन्ययार्थ 'महन्भूया' महाभूतानि-पृथिव्यपूतेजोवाय्वाकाशरूपाणि (पंच) पञ्चसंख्यकानि 'सति' सन्ति विद्यन्ते । तानि (इहं) इह लोके (एगेसि) एकेषां केषा व्यापक और कथंचित् अव्यापक है। इस प्रकार अन्ततः अनेकवाद के चरणों की ही सब को शरण ग्रहण करनी पड़ती है । अतएव स्याद्वाद का मार्ग ही निराकुल है ॥१४॥ चौदहवीं गाथा का व्याख्यान समाप्त करके पुनः अकारकवादी के मत का निराकरण करते हैं-"सन्ति" इत्यादि ___ शब्दार्थ- 'महन्भूया-महाभूतानि' महाभूत 'पंच-पञ्च' पांच प्रकार के 'सतिसन्नि' हैं 'इह-दह' इस लोकमें 'एगेसि-एकेषां किन्हींने 'अहिया-आख्यातानि' कथन किया है 'पुणो-पुनः' फिर 'आहु-आहुः' वे कहते हैं 'आयछट्ठो-आत्मा षष्ठः' आत्मा छट्ठा है 'आया लोगे य आत्मा तथा लोकः' आत्मा एवं लोक 'सासप-शाश्वत' नित्य है इस प्रकार आत्मषष्ठवादीका मत हैं ॥१५॥ આ રીતે આખરે તે સૌએ અનેકાન્તિકવાદનું જ શરણ સ્વીકારવું પડે છે. તેથી સ્યાદ્વાદને માર્ગ જ નિરાકુલ છે. ગાથા ૧૪ વૈદમી ગાથાનું વ્યાખ્યાન પૂરું થયું. હજી પણ સૂત્રકાર અકારકવાદિઓના મતનું નિરાકરણ કરે છે. हाथ- 'महब्भूया महाभूतानि' महाभूतो 'पंच-पञ्च' पाय ना 'संतिसन्ति छ. 'इह-इह' भाभा 'एगेसिं-पकेषां ये 'आहिया-आख्यातानि उस छे. 'पुणो-पुनः' quो 'आहु-आहुः' तेसो छ - 'आयछटो आत्माषष्ठ' मात्मा ७४ो छ. 'आया लोगे य-आत्मा तथा लोक' आत्मा भने सो 'सासए-शाश्वत' નિત્ય છે. આ પ્રમાણેને આત્મષષ્ઠવાદિને મત છે. ૧૫. For Private And Personal Use Only
SR No.020778
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size13 MB
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