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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५० सूत्रकृताङ्गसूत्रे स्यात्, सर्वेषामैक्येन पार्थक्याऽभावात् । तथा सर्वव्यापकत्वमप्यात्मनो न संभवति । शरीराकारपरिणतभूते-एवचेतनाया उपलब्धिदृश्यते, न च घटपटादिषु, अतो नात्मा सर्वव्यापकः । तथा देवदत्तज्ञानं यज्ञदत्तो नावगच्छति इत्यपि निर्विवादमेव । यदि सर्वेषामैकएवात्मा भवेत्तदा देवदत्तीयज्ञानं यज्ञदत्तोऽपि जानीयात् । नत्त्वेवं कुत्रचिदपि दृश्यते, अतो न सर्वेषामात्मा एक इति ॥१०॥ ____ आत्मैकत्ववादिमतं निराकृत्य, तज्जीवतच्छरीरवादिमतं दृषयितुं तस्य पूर्वपक्षमाह- 'पत्तेयं' इत्यादि । पत्तेयं कसिणे आया जे वाला जे य पंडिया । ९ २२ १० १२ १५ १३ १४ संति पिच्चा न ते संति नत्थि सत्तोववाइया ॥११॥ छाया प्रत्येकं कृत्स्ना आत्मानः, ये बाला ये च पण्डिताः। सन्ति प्रेत्य न ते सन्ति, न सन्ति सत्त्वा औपपातिकाः ॥११॥ तो जो पापी नहीं है उसको भी पापी जैसा ही दुःख भोगना पडता, क्यों कि सब एक होने से भिन्नता का अभाव है । तथा आत्मा सर्वव्यापक भी नही है। शरीर के आकार में परिणत भूत में ही चेतना की उपलब्धि होती है, घट पट आदि में नहीं है। तथा यह भी निर्विवाद है कि देवदत्त के ज्ञान को यज्ञदत्त नहीं जानता । यदि सब का आत्मा एक ही होता तो देवदत्त के ज्ञान को यज्ञदत्त भी जानता । मगर ऐसा कहीं भी नहीं देखा जाता । अतएव सब का आत्मा एक नहीं है ॥ १० ॥ ___ एकात्मवादी के मत का निराकरण करके "तज्जीव तच्छरीरवादी" के मत को दृषित करने के लिए उसका पूर्वपक्ष कहते हैं--"पत्तेयं" इत्यादि । છે. તથા આત્મા સર્વ વ્યાપક પણ નથી. શરીરના આકારે પરિણત ભૂતમાં જ ચેતનાની ઉપલબ્ધિ થાય છે, ઘટ, પટ આદિમાં થતી નથી. તે કારણે આત્માને સર્વવ્યાપક પણ માની શકાય નહીં. તથા એ વાત પણ નિર્વિવાદ છે કે દેવદત્તના જ્ઞાનને યજ્ઞદત્ત જાણ નથી. જે સૌને આત્મા એક જ હોત તે દેવદત્તના જ્ઞાનને યજ્ઞદત્ત જાણી શક્ત પણ એવું કદી બની શકતું નથી. તેથી એ વાત સિદ્ધ થાય છે કે સૌને આત્મા એક નથી. ગા.૧ળા मेडात्मवादी मोना मतनु न शने हुवे सूत्र१२ “तज्जीवतघ्छरीरवादी" ना મતનું (જીવની એક ભવમાંથી ગતિ નહીં માનનારના મતનું સ્વરૂપ પ્રકટ કરે છે "पत्तेय" त्यादि For Private And Personal Use Only
SR No.020778
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size13 MB
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