SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 162
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कलाकाराने सत्त्वस्य स्वरूपतो भेडो भवति एवं प्रवम्-अनेनैव प्रकारेण 'भो' मोः लोकाः ! 'कसिणे लोए' कृत्स्नो लोक:- वेतनाचेतनारूपः बिल्लू' विद्वान् जानस्वरूपः पृथिवीज़लादिभूताकारतया नाना अनेकप्रकारको दृश्यते वर्तते अनं भावः-एकएमात्मा विद्वान् ज्ञातस्वरूपः पृथिव्यादिभूताकारतया अनेकरूपोण परिदृश्यमानो भन्नति, नचैतावता आमतत्वस्ट कामपि भेदो भवति, पृथिवीवद्, तथा च श्रुतिः "एक एवहि भूसत्मा भूते भूते व्यवस्थितः । एकत्रा बहुधा चैव दृश्यते जलचन्द्रवत् ॥१॥ पुरुष एवेदं सर्वम् २, एकमेवाद्वित्तीयम् ब्रह्म ३ । वायुर्यथैको भुवनं प्रविष्टो रूपं रूपं प्रतिरूपो बभूव लोगो ! अचेतन चेतन रूप समस्त लोक ज्ञान रूप (आत्मा) ही है, महार पृथ्वी जल आदि भूतों के आकार में होने से अनेक प्रकार का दिखाई दे रहा है । तात्पर्य यह है कि एक ही ज्ञान स्वरूप आत्मा पृथ्वी आदि भूतों के आकार में परिणत होने से अनेक रूपों में दिखाई दे रहा है । मगर जैसे पृथ्वी, घटादि सब में एक ही है, उसी प्रकार आत्मा भी एक ही है उसमें कोई भेद नहीं है । श्रुति मे कहा है-"एक एव हि" इत्यादि । एक ही भूतामा प्रत्येक भूत में रहा हुआ है। वह जलचन्द्र के समान एक प्रकार का होने पर भी अनेक प्रकार का दिखाई देता है, ॥१॥ "यही सब पुरुष की है, ॥२॥ "एक अद्वितीय तत्त्व ही है,, ॥३॥ येत ३स.समहाशान३५ (AICHI )२८ छ, ५२न्तु वा भूत (grat) ના આકારમાં હોવાથી અનેક પ્રકારને દેખાય છે. આ કથનને ભાવાર્થ એ છે કે-જ્ઞાનસ્વરૂપ આત્મા તે એક જ છે પરંતુ તે પૃથ્વી આદિ ભૂતના આકારમાં પરિણત થઈ જાણી અનેક રૂપે દેખાય છે. પરંતુ જેવી રીતે ઘટાદિ સમસ્ત પદાર્થોમાં પૃથ્વી રૂપ તત્વ त १४:, मे प्रमाणे मा.५५-२४.१४:छे-तेमा अ.ना. अतिभा । -"कन हि" sen-" मे ११ भूतमा प्रत्ये भूतम दो . ते Ass (PATALAन्द्रमा प्रतिमि) समान से आरोप छत मने प्रारना हेमाय.. ॥१॥ " मे ॥ पुरुष (मामा) छे" ॥२॥ " में अद्वितीय तत्व छे” ॥ ३ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020778
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages709
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy