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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बीओ परिच्छेओ। सुरसुंदरी- Thed एत्थ तडी एत्थ बग्धोत्ति // 215 // एएणं चिय नेच्छंति साहवो सजणेहिं संसम्गि / जम्हा विओगविहुरियहिययस्स न ओसहं चरि। | अन्नं // 216 // युग्मम् // जइवि हु वहइ न जीहा एरिसवयणे समुल्लविजते / तहवि हु भणामि मुंचसु गच्छामो संपयं अम्हे // 217 // ता किंपि चिंतिऊणं खणंतरं दीहेरं च नीससिउं / बजरइ सुप्पइट्ठो सविसायं एरिसं वयणं // 218 // अम्हारिसेहिं गिहमा॥१७॥ गयाण तुम्हारिसाणं सुयणाणं / को उवयारो कीरउ एरिसठाणे वसंतेहिं 1 // 219 / / तहवि हु भणामि किंचिवि कायवो नेव पत्थणा मंगो। जेण परकजसाहणनिरया खलु सजणा होति / / 220 / / तत्तो फुरंतनिम्मलमऊहविच्छेरियदसदिसाऽऽभोगो। एक्कोवि अणेग* गुणो पवरमणी तस्स उवणीओ // 22 // दटुं दिव्वमणि तं दीसंताणेयलक्खणं विमलं / वियसियलोयणजुअलो अह धणदेवो इम भणइ // 222 / / एरिसपवरमणीणं मणुस्सखेत्तम्मि संभवो नत्थि / नवरं जइ सुरलोगे हवेज न हु अन्नखेत्तम्मि // 223 // एवं वि| णिच्छियम्मिवि तहवि हु कोहलं महं हियए / तो भणसु कह णु जाया संपत्ती तुम्ह एयस्स ? // 224 // तो भणइ सुप्पइट्ठो सम्म | हि विणिच्छियं तुमे भद्द! माणुसखेत्तसमुत्थो न होइ एसो मणी ताव // 225 / / किंतु सुरलोगजाओ एसो संपाविओ जहम्हेहिं / |तं एगमणो होउं जइ कोउँगमत्थि तो सुणसु / / 226 // पुव्वं एगम्मि दिणे पभायसमयम्मि गहियकोदंडा। चलिओ कइवयनियपु रिसपरिगओ मिगवहट्ठाए / 227 // उत्तरदिसामुहो हं गाउयमेचम्मि भूमिभागम्मि / घणपत्चलतरुवरसंकुलम्मि वियरामि जाव वणे | // 228 // ताव य निसुओ सद्दो दूसहगुरुदुक्खस्यओ कैलुणो / आगासे महिलाए सघग्घरं रोयमाणीए // 229 // युग्मम् // हा! कह संसक्किम्-सातिम् / 1 दीर्घम् / 3 सुजनानाम् / 4 उपचारः समादरः। 5 क्रियताम् / 6 मयूखा:-किरणाः / 7 विच्छुरितः व्याप्तः / 8 आभोगः= * प्रदेशः / 9 विनिश्चिते / 1. कुतुहलम् / 11 संप्राप्तिः / 12 कौतुकम् / 13 कोदण्डं धनुः / 14 करुणः करुणोत्पादकः / // 17 // For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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