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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandie सुरसुंदरी चरिअं --*48 मोलमो परिच्छेओ // 138 // * | रणसमयखीणाऊ / उप्पनो वणमहिसो दवेण दड्डो मओ रन्ने // 187 / / युग्मम् / / खयकिमिकुलाउलाए गम्भे छुहियाए सारमेईएँ। जाओ सुणओ ताव य पंचमदिवसे मया जणणी // 188 // डिंभकयत्थणदुहिओ भुक्खाइ मओ तओवि विप्पगिहे / जाओ गलि- | गोरहओ तोत्तयघाएहिं विद्दविओ // 189 // | गलियत्तणखिनेणं दिनो विप्पेण घंचियवरस्स / तिलजंतम्मि वहतो अहोनिसिं दुब्बलो जाओ।।१९०॥ किमिकायखइयदेहो पाए | |घसिऊण दीहरं कालं / गोसीसतरुगणड्डे हिमवंते पन्नगो जाओ॥१९१।। डसिओ तेण नरवर! पण्होत्तरवावडो सह पियाए। तुह अंगरक्खनिहओ उप्पनो मयणवेगो सो॥१९२।। पुवकयवेवसओ पुत्तोवि वहुजओ इमो तेण / अद्दिस्सो हणइ तुम सो चिय | बच्चोहरे तइया // 193 / / कोतकतो भयसंभमेण पडिओ स वच्चकूवम्मि / बच्चाहारो तेहियंब सो ठिओ "दीहरं कालं // 194 // असु-| द्धविसोहयपुरिसेहिं दारपिहणे कयाइ अवणीए / रत्तीए निग्गओ सो नट्ठो य भएण तुह राय ! // 195 / / पावोदएण अणुचियआ| हारनिसेवणेण से कोढं / जायं वेयणपउरं संपइ सो भमइ दुक्खत्तो // 196 / / सोऊण सूरिखयणं संविग्गो जायविरइपरिणामो / सुर सुंदरिबीयसुर्य अणंगकेउं ठविय रजे // 197 / / जिणचेइयाण पूर्य काउं दाऊण विविहदाणाई / वत्थासणाइएहि सम्माणेऊण मुणिसंघ ||198|| बहुविजाहरसहिओ पब्बइओ जायतिब्बसंवेगो / सुहलग्गे संपत्ते पयमूले चित्तवेगस्स // 199 / / तिसृभिः विशेषकम् / / सुर| सुंदरीवि सोउं वेरनिमित्तं सुदारुणं दुक्खं / पव्वइया गणिणीए पयमूले कणगमालाए / / 200 // इय तिन्निवि मिलियाओ वयपडि| वत्तीए पुव्वभगिणीओ। ताणं च पुव्वदईया मित्ता ते तिन्निवि मिलिया // 201 // चित्तगइवायगस्स ओ पासे पढिऊण अंगसुत्ताई। | सारमेयी-शुनी। 2 शुनकः श्वा / 3 घंचिओ तैलिकः / 4 तिलयन्त्रम् , द्वितीयायाः स्थाने सप्तमी। 5 वावटो व्यापृतः / 6 वधोयतः। 7 कुन्ता- क्रान्तः / 8 वर्चःकूपे / 9 तत्रैव। 1. दीहर-दीर्घम् / 11 पिणं-पिधानम् / 12 कुष्ठः / 13 दयिता: भारः / 14 वायगो वाचकः उपाध्यायः।। ***46HIR 39* * // 13 // For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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