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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चरि // 136 // * सुरसुंदरीइ पुत्तो इहाणिओ जम्मदिवसम्मि // 126 / / अवमनिओ सि मित्तय ! जणएण तुमं सुनिठुरमणेण / तुज्झ कणिट्ठो भाया * सोलहमो | र्जुवरज्जे जेण अहिसित्तो॥१२७॥ मायावित्ताणि य तुज्झ दसणं कहवि नेय इच्छंति / वेरियसरिसं धारेंति जेण दूरट्ठियं निचं // 128 / / परिच्छेओ *न य लहसि तुम गंतु तीइ दिसाएवि जत्थ तुह जणओ। ता पिउपरिभूएणं वयंस ! किं तुज्झ जीएण? // 129 // एमाइवयणमहु सप्पिहोमिओ तस्स गुरुपओसग्गी। जलिओ जम्मपरंपरनिबद्धसंबंधजोगेण // 130 // अह सो रोसैवसट्टो पभणइ दंसेहि वेरियं पियरं / दंसेमि अवनाए जेण फलं तस्स पावस्स // 131 // भणइ तओ जलकतो सो तुझ पिया अणेगखयरेहिं / रक्खिजइ तिक्खा. | लियखग्गगयावग्गहत्थेहिं // 132 // रूवपरिवत्तिणि मित्त ! गेण्ह एयं कुलागयं विजं / जेण जहिच्छियअत्थस्स साहगो होसि अइ| रेण // 133 / / दिन्ना य तेण विजा रॅनं गंतूण साहिया कमसो। गयपुरमागम्म ठिओ चेडीरूवेण देविगिहे // 134 / / सुरसुंदरीइ चेडी ललियं हरिऊण दूरदेसम्मि / मोत्तण तीइ रूवेण सो ठिओ निववहट्ठाए // 135 // कसिणाहिडसणदिवसाउ नरवई दिव्वअंगुलीएण / करसंठिएण चिट्ठइ सुरयाइयं पमोत्तूर्ण // 136 // अह अन्नया नरिंदो भोत्तूणं खयरकंचुइसमग्गो। देवीघरं पविट्ठो दिह्रो चेडीइ पावाए // 137 / / मोत्तूण अंगरक्खे बाहिं देवीए विहियमंगिल्लो / वासहरम्मि पविट्ठो रयणविचित्तम्मि देविजुओ॥१३८|| परिहासाईहिं खणं अच्छित्ता सुरयसेवणारंभे / मिल्लेइ अंगुलीयं देवी आभरणठाणम्मि // 139 / / पारद्धम्मि य सुरए सहसा आयडिऊण करवालं / चेडीवेसेण ठिओ तणयकयंतो तहिं पत्तो // 140 / / जणणीसुरयासत्तं जणयं घाएउमुजओ तणओ / हा! हा! कट्ठम // 136 // 1 भवमतः अवज्ञातः / 2 यौवराज्ये / / जीवितेन / 4 सर्पिः धृतम् / 5 रोषवशातः / 6 अवज्ञा=अपमानः / 7 अरण्यम् / 8 तनयरूप* कृतान्त इत्यर्थः / For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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