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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरसुंदरी चरि // 128 // इवि विहरतो हत्थिसीसए पत्तो / पारणदिणे पविट्ठो भिक्खडा तत्थ नयरम्मि // 139 / / अह दित्तसंडपडिपेल्लिओ अहं निवडिओ अह निवाडआपण्ण रहमो धरावडे / हसिओ विमलस्स सुएहिं पावकम्मेहिं पुणरुत्तं // 140 // तं कत्थ बलं संपइ गइंदपडिपेल्लिणेकरसियं ते ? / इय भणमाणा परिच्छेओ ताहे हंतुं उद्धाइया सव्वे // 141 // पिइवेरं सुमरंता समागया लउडपत्थरविहत्था / ददृण य ते कुविओ अहंपि अन्नाणदोसेण // 142 // घेत्तूण खंभमेगं तत्तो उद्धाइओ इय भणंतो / रे ! रे ! सीहस्स बलं खंडिजइ किं सियालेहिं ? // 143 / / जइवि अहं किसदेहो तहवि हु गम्मो न तुम्ह ता होह / खणमेगं संमुहया पिउमग्गं जेण पेसेमि // 144 // हैयमहिए ते काउं पच्छायावाओ अणसणं काउं। लजाए दुचरियं न य तं सिट्ठ गुरुजणस्स // 145 / / तत्तो अप्पडिकतो खंडियचरणो मओ तओ कुमर ! / उववन्नो धरणिंदो संपह | सो हं इहायाओ // 146 / / ता मा कुणसु विसायं मए विदिनाओ तुज्झ सिझंतु / पन्नत्तिमाझ्याओ असाहियाओवि विजाओ॥१४७॥ | इय तव्वयणं सोउं महापसाउत्ति जंपिउं कुमरो। करकमलमउलसोहो पडिओ धरणिंदपाएमु // 148 // नहयरसंदोहसमन्निएण | | तारण कयमहामहिमो। धरणिंदो संपत्तो सट्ठाण परियणसमेओ॥१४९।। विजाहरसहिएणं महाविभूईइ चित्तवेगेण / अहिसित्तो निय| यपए कुमरो तह चित्तगइणावि // 150 // अह खयरचक्कवट्टी जाओ वेयड्डपव्वए एसो / सयलखयरेहि तत्वो दिनाओ निययधूयाओ | // 151 / / तो भणइ मयरकेऊ न ताव परिणेमि अन्नकनाओ। जाव न सा परिणीया धूया नरवाहणनिवस्स // 152 // तो भणइ भाणुवेगो इण्हि गंतु कुसग्गनयरम्मि / नरवाहणं विमग्गिय वरेमि सुरसुंदरिं तुम्ह // 153 / / तो भणइ मयरकेऊ एवं सिग्धं करेसु, | अम्हेवि / तोयाणुन्नं घेत्तुं गच्छामो हत्थिणपुरम्मि // 154 // वंदामो पयजुयलं अदिट्ठपुव्वाण जणणिजणयाणं / इय भणिए उप्पइओ 1 हप्तषण्डपरिपीडितः / 2 उद्घाविताः / 3 हृतमथितान् / 4 पश्चात्तापात् / 5 तातानुज्ञाम् / // 12 For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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