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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandie सुरसुंदरी चरि // 127 // धम्मो अणवजो कहिउमाढत्तो॥१०६॥ सारीरमाणसाणं दुक्खाणं खयं समिच्छमाणेहिं / जीवाण अभयदाणं मणवईकाएहिं कायवं पण्ण रहमो * // 107|| जरमरणदुक्खपउरं संसारं ते तरति लीलाए / सच्चमणवजवयणं सयावि भासंति जे जीवा // 108 // दोगच्चवाहिजरमरण- *परिच्छेओ | सोयपियविप्पओगवसणाई / जायंति न जीवाणं जे ओ अदिन्नं न गिण्हंति // 109 / / वजंति जे अबभं जीवा मणवयणकायजोगेहि / | निद्भूयसयलकम्मा वयंति ते सासयं ठाणं // 110 // धम्मोवगरणवजं परिग्गहं जे कयाइ न धरैति / ते भवजलहिं तरिऊणं जंति | अयरामरं ठाणं // 111 / / एमाइसमणधम्मे कहिए समणेण जिणवरुद्दिढे / पत्थावं नाऊणं कुमरेण मुणी इमं पुट्ठो // 112 // भयवं! | विजाच्छेओ कीस कओ मज्झ तेण देवेण ? / मुणिणावि वइरकारणमक्खायं तस्स नीसेसं // 113 // तं मुणिवयणं सोउं उप्पन्नं मय| रकेउकुमरस्स / जाईसरणं सहसा ईहापोहं करितस्स // 114 // सरिऊण य पुन्वभवं भणिय कुमरेण एवमेयंति / हरिऊण कत्थ मुक्का | भयवं ! सुरसुंदरी तेण ? // 115 / / तत्तो मुणिणा भणियं चुयस्स देवस्स तस्स हत्थाओ / गयणाओ निवडिया सा पडिया कुसुमा| यरुजाणे // 116 // हथिणपुरम्मि अच्छइ संपइ सा तुज्झ कुमर ! जणणीए / कमलावईइ पासे तत्तो कुमरेण वञ्जरियं // 117 // किं | मह न होइ जणओ एसो जणणीव कणगमालत्ति। तचो मुणिणा सिट्ठो सुरावहाराइवुत्ततो // 118 // अह चित्तवेगरना भणियं मुणि| वयणभावियमणेण / किं कुमर ! तं न सुमरिसि जं तइया देवभावम्मि // 119 / / तुमए चिय मह सिर्ल्ड अवहरिओ पुब्बवेरियसुरेण। * | तो चित्तवेगखयराहिवस्स गेहम्मि वड्डिहिसि // 120 // एयं तं संजायं ता पुणरवि पुत्त ! ताओ विजाओ / साहेसु, चयसु सोग | | निययपए जेण ठावेमि // 121 / / मोत्तूण विसयसंग भवभमणुभंतमाणसा अम्हे / इच्छामो पव्वजं निरवजं संपर्य काउं // 122 // 1 अनवद्यःनिर्दोषः / 3 बई-वाक् / 3 अक्खार्य-आख्यातन् उक्तम् / 4 उम्भंत उनान्तम्=खिनम् / // 127 // Fer Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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