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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 71 // अणसणभेयाइ तवो बारसहा तेण निजरा भणिया / कणगावलिभेयाओ अहव तवोऽणेगहा होइ // 72 // पयइठिईअणुभागपएसभेया चउबिहो बंधो / अट्ठविहकम्मविगमो मोक्खो पुण सासओ भणिओ // 73 // एएसिं सद्दहाणे अरिहं देवो सुसाहुणो गुरुणो / इय पडिवत्तिनिमित्त सम्मत्त होइ विन्नेयं // 74 // सावजजोगपरिवाणं तु मणवयणकायजोगेहिं / एसो जईण धम्मो दुरैणुचरो मंदसत्ताणं // 75 / / कायब्वा जेण दया छण्हवि पुढवाइयाण जीवाण / सबोवाहिविसुद्धं भणियव्वं सच्चयं वयण // 76 // तिण| मित्तपि अदिन्नं न य वित्तव्वं असुद्धचित्तेण / धारेयव्वं च सया नव गुत्तिसणाहबभैवयं // 77|| धम्मोवगरणवज्जो थेवोवि परिग्गहो | न कायव्यो / आहारचउकंपि हु रयणीए नेव भोत्तव्वं // 78 // समिईउ पंच गुत्तीउ तिन्नि निच च सेवियवाओ। जेयव्वा तह उँइया बाबीसपरीसहा सम्मं / / 79 / / कायव्वं सत्तीए वेयावच्चं च सूरिपमुहाण | नरतिरिदेवोहकया उवसग्गा तह य सहियव्या / / 8 / / | सद्दाइसु विसएसु रागद्दोसा न चेव कायव्वा / बायालदोससुद्धो भोत्तव्यो कारणे पिंडो॥८१।। वेयणवेयावच्चे ईरियट्ठाए य संजमट्ठाए। | तह पाणवत्तियाए छटुं पुण धम्मचिंताए / / 82 // कायव्यो सज्झाओ परिहरियव्याओ सव्वविकहाओ / उअमियव्वं सययं सम्भितरबाहिरतवम्मि // 8 // मोत्तूण अट्टरुद्दे झाएयव्वाणि धम्ममुक्काणि / भावेयव्यो य अणिच्चयाइवरभावणानिवहो // 84 / / अब्भसियत्वो विणओ पावा सैच्छंदया न कायव्वा / निचपि अणुढेओ दसप्पयारोवि जइधम्मो // 85|| खंती मद्दव अञ्जव मुत्ती तबसंजमे य | बोद्धब्वे / सच्चं सोयं आकिंचणं च 'बंभं जइधम्मो // 86 // वसियव्वं मुणिमज्झे नो कायब्वा कुसीलसंसग्गी / पंचविहोवि पमाओ 1 पडिवत्ती-प्रतिपत्तिः विज्ञानम् / 2 दुरनुचरः दुरनुष्ठानः / 3 ब्रह्मवतम् ब्रह्मचर्यम् / 4 उदिताः सन्त इत्यर्थः / 5 ईर्या-कस्यापि जन्तोर्बाधा न स्यात् तथा भूमि विलोक्य पादन्यासः / / स्वाच्छन्दिकानि / 7 मुक्तिः लोभाभावः / 8 आकिञ्चन्यम् अकिश्चनस्य द्रविणरहितस्य भावः कर्म वेति विगृह्य / | 9 बभंम् ब्रह्म / For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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