________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit सुरसुंदरी नवमो परिच्छेओ चरि। // 74 // साहइ सो देवो जाव चित्तवेगस्स / धणदेव ! ताव निसुणसु जं संवित्तं तहिं तइया // 89 // सोउं दइयामरणं दूसहगुरुदुक्खदलिय- सवंगो / वजासणिभिन्नो इव उग्गभुयंगेण गसिउच्च / / 90 // गहिउच्च रक्खसेणं पहओ इव मोग्गरेण गरुएण / नीससिय दीहदीहं गुरु- सोयाऊरिओ खयरो॥९१॥ मुच्छानिमीलियच्छो धसत्ति धरणीयलम्मि सो पडिओ। निन्नट्ठसयलचेट्ठो संजाओ विगयजीउव्व // 92 // तिसृभिः कुलकम् / / दट्टण चित्तवेगं तदवत्थं ताहे तेण देवेण / सीयलजलमाणेत्ता सित्तो सो सबअंगेसु // 93 // विहिओ य | मए पवणो सुकोमलो नियय उत्तरीएण / तत्तो खणंतराओ लभ्रूणवि चेयणं कहवि // 94 // पुणरुत्तं मुच्छिाइ अइगुरुअणुरायमो| हिओ खयरो / अइबल्लहमहिलाए मरणं सरिऊण दुक्खत्तो // 95 // कहकहवि समासत्थो विहिओ गुरुसोयपीडिओ तहवि / थूल|सुए मुयंतो अहोमुहो चिट्ठई जाव // 16 // ताव य सुरेण भणिओ महिलामेत्तस्स कारणे कीस / आयासिजइ अप्पा एवंविह* सोयकरणेणं ? // 97 // युग्मम् // विबुहजणनिंदणिजं असमंजसचेट्ठियं पमोत्तूण / वत्थुसरूवं सुंदर ! भावेयव्वं पयत्तेण // 28 // | संसारम्मि अणते परिम्भमंताण होति जीवाण / संयोगविप्पओगा इट्ठाणिद्वेहिं सेयहुत्तं // 99 // नहु हरिसो संजोगे नेवं विसा. | ओवि इट्ठविरहम्मि / कायब्वो बुद्धिमया संसारसरूवयं नाउं // 10 // | किंच / पुत्वभवे जो तुमए अणुरागो नेव उज्झिओ तइया / समणत्तणेवि पत्ते तस्स पभावाउ सग्गेवि // 1011 // रिद्धिबलतेयहीणो आसि तुमं तह य एत्थ जम्मम्मि / एवं विओयदुक्खं पत्तं तकम्मदोसेण // 102 // युग्मम् / तहवि हु अञ्जवि राग तीए उवरि न मुंचसे कीस? / एवंविहदुक्खाणं ऐसो चिय कारणं परमं // 103 / / अह भणइ चित्तवेगो सुरवर! मह फुरइ दाहिणं नयणं / पह 1 स्मृत्वा / 2 दुःखार्तः / 3 समास्वस्थः / 4 स्थूलाधुकाणि / 5 शतकृत्वः / 6 श्रमणत्वेऽपि प्राप्ते / 7 रागः / ||74 // For Private and Personal Use Only