________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पढमो परिच्छेओ। सुरसुंदरी प्पनासणे कयपयत्तस्स // 6 // रागाइवइरिसेणव्व जस्स दट्टुं अणन्नसामत्थं / थरहरिया अच्चत्थं ससिलोच्चयसायरा वसुहा // 7 // निम्मचरि। लकमनहनियरो पडिबिंबियपणयतिहुअणो जस्स / उव्वहइ जायगवो केवलनाणस्स समसीसिं // 8 // जस्स य पणाममेचा निम्मलक | मणक्खपडियपडिबिम्बा / एक्कारसगुणमुवलब्भ अप्पयं हरिसिया तियसा // 9 // तं वंदे जिणयंदं देविंदनरिंदविंदवंदिययं / सिद्धत्थ॥शा | नरिंदसु चरिमं चरिमं गई पत्तं // 10 // पञ्चभिः कुलकम् / / दुञ्जयअणंगमायंगभंगसारंगपुंगवसरिच्छे / सासयसिवसुहसहिए सिद्धे सिरसा नमसामि // 11 // दुद्धसधंतविद्धंसधीरसिद्धृतदेसए धीरे / पंचविहायाररए सिरसा वंदामि आयरिए // 12 // विसयसुहनिप्पिवासे संसारच्छेयकरणतल्लिच्छे / वंदामि उवज्झाए सुत्तत्थविसारए सययं // 13 // पंचमहव्वयदुव्वहपव्वयउव्वहणञ्चले सिरसा। घरवासपासमुक्के साहू सव्वे नमसामि // 14 // जीए कमकमलं पाविऊण पाविति पाणिणो परमं / नाणं अन्नाणा विहु सा जयइ सरस्सई देवी // 15 // जाण पसाएण पुण मएवि जडबुद्धिणा कहाकरणे / लीलाए पेयट्टिजइ, विसेसओ ते गुरू वंदे // 16 // इय पुजपणइकरणप्पणासियासेसविग्यसंधाओ। वोच्छ संवेगकरि कहं तु सुरसुंदरिं नाम // 17 // अन्नं च तस्स कीरइ पढम चिय पत्थणा खलजणस्स / बीहेइ कविजणो जस्स मूसओ इव बिरालस्स / / 18 / / अहवा सहावउच्चिय दोसग्गहणम्मि वावडॅमणस्स / अब्भत्थणासएहि वि न खलस्स खलत्तणं गलइ / / 19 / / कुडिलत्तणं न उज्झइ परिच्छिद्दगवेसओ य दोजीहो / पत्थिखंतो वि कवीहिं दुञ्जणो सप्पसारिच्छो // 20 // अब्भत्थिओ वि वंको कलुसियहियओ सुवित्तपरिहीणो। चंदोव्व दुजणो इह 'दोसासंगे पयासेइ // 21 // कम्पिता। 2 शिलोच्चयः पर्वतः / 3 समसीसी-स्पर्धा / 4 चरमगतिर्मुक्तिः / 5 सारशः सिंहः / 6 वान्तं तिमिरम् / 7 तल्लिप्सान् तत्परान्। 8 प्रत्यलान्-समर्थान् / 9 प्रवृत्यते। 10 च्यापृतमनसः / 11 परिच्छिद्रगवेषकः, सर्पपक्षे छिद-बिलम् , दुर्जनपक्षे छिद्रदूषणम् / 12 चन्द्रपक्षे सुवृत्तं शोभनकु16 ण्डलाकारः, दुर्जनपक्षे सदाचारः / 13 चन्द्रपक्षे दोषाया रात्रेः स्वाञ, दुर्जनपक्षे दोषाणां दूषणानामासने / For Private and Personal Use Only शा