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-हे लोको! आ सुरसेन तथा महासेनना दृष्टांतथी दुःखोना समूहना कारणरूप अनर्थदंडने दूरथीजतनी आपो? ॥४५॥
॥ एरीते अनर्थदंड वतना संबंधमां सुरसेन महासेननी कथा कही. ॥ ॥ इति अनर्थदंडविरमणवतमाहात्म्योपदर्शने सुरसेनमहासेनचरित्रं समाप्तं ॥ श्रीरस्तु॥ आ चरित्र श्रीवासुपूज्यचरित्रनामनामहाकाव्यमांथी स्वपरनाश्रेयने माटे तेना अन्वय तथा गुजराती भाषांतर करी जामनगर निवासी पंडित श्रावक हीरालाल हंसराजे पोताना
श्रीजैनभास्करोदय प्रीन्टींग प्रेसमा छापी प्रसिद्ध कथु छे ॥ श्रीरस्तु ॥