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लाज पठीना ले. अर्थात् पुत्रलानथी उडा . ॥५६॥ दिशाउँना अंतनागमां विश्रा ति पाम्यो डे मृदंगनो नाद जेने विषे एवं, नेरी (नोबत ) ना शब्दे करीने युक्त ने शंखना नाद जेने विषे एवं, तेम ज नृत्य करती एवी वेश्याए कस्यो ने श्रानंद जेने विषे एवं अने बीजा वेषोए करीने अर्थात् लोकोए शरीरने विषे धारण करेला वस्त्र अने अलंकारोनी शोनाए करीने श्राप्यो डे मनने हर्ष जेणे एव॒ (नागसारथीए ।
'दिगंतविश्रांतमृदंगनादं, नेरीरवैमिश्रितशंखनादम् ॥ नृत्यधुवारकृतप्रमोदं, वेषांतरैर्दत्तमनोविनोदम् ॥५॥ सुवासिनीमंगलगीतगानं, 'वित्तानुसारेण 'वितीर्णदानम् ॥
कार्यातराऽऽप्रेरितकिंकरौघं, स्वपूज्यपूजाकरणैरमोघम् ॥ ५ ॥ श्रेष्ठ वर्धापन कराव्यु ) ॥५७॥ सुवासण स्त्रीए कहुं ने मांगलिक गीतोनुं गान || जेने विषे, वली नागसारथीए पोताना अव्यने अनुसारे आप्यु ले दान जेने विषे, ते || मज जूदा जूदा कायोंमां प्रेख्या अनुचरोना समूहो जेने विषे, अने पोताने पूज्य एवा तीर्थकर अथवा साधु विगेरेनी पूजाए करीने सफल एवं (नागसारथीए श्रेष्ठ ||
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