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सा०
॥ २ ॥
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खेला (श्रेष्ठ महोटा पत्रोवाला), व्याश्चर्य उत्पन्न करनारा ( प्रफुल्लित ययेला), सत्पुरु पोनां चरित्रोवाला (पुष्पनी सुगंधि वाला ), कल्याण रूप फलवाला ( उत्तम फल वाला), विद्वानोने जोवा योग्य ( देवतार्जए ज जोवा योग्य ) अने ताविक वस्तु कहे। नार एवा श्रागम रूप कल्पवृक्षने हुं निरंतर सेतुं बुं. ॥ ७ ॥ जेमना मुखथी उत्तम एवा
'निशम्य 'येषां वैरशब्दजातं, सर्वार्थसिद्धिं मैनुजा विनंते ॥
'ते चारुपक्षाः श्रितकल्पवृक्षाः, श्री गौतमाद्या गणपा जयंति ॥ ८ ॥ हवे कवि पोताना चारित्रप्रन नामना गुरुने नमस्कार करे बे. यस्य प्रसादेन जॅडाशयानां यात्यांशु मालिन्यमपीदृशानाम् ॥ पास्महे ऽगस्त्यमिवामैलं "तं, चारित्रपूर्वप्रननामसू रिम् ॥ ९ ॥
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शब्द समूहने सांजलीने मनुष्यो सर्व प्रकारना प्रर्थनी सिद्धिने पामे बे, श्रेष्ठ पक्षवाला अने ( तीर्थंकर रूप ) कल्पवृक्षनो श्राश्रय कस्यो बे जेमणे एवा ते चौदशेने बावन | श्री गौतमादिक गणधरो जयवंता वर्त्ते बे ॥ ८ ॥ जेना प्रसादे करीने श्रावा जड
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प्रस्ताव०
॥ २ ॥