________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
परस्पर पुःख सुखने विषे अर्थात् सुख पुःखने सहन करवा माटे जूदां जूदां श्रे गने धारण करनारा उतां पण मने करीने निरंतर एकपणाने पामेला ते नागसारथी अने सुलसानी पगले पगले वृद्धि पामती एवी प्रीति, निश्चे नख अने मांसनी उपमा
(वसंततिलका वृत्तम्) अन्योन्यजुःखसुखयोः हथगंगनाजोरप्यकतां गतवतोर्मनसा सदैव ॥ प्रीतिस्तयोः अंतिपदं परिवईमाना, नूनं बनूव नैखमांससमोपमाना॥६६॥
(शार्दूलविक्रीडितं वृत्तम् ). तुल्यानंदविषादयोः प्रतिदिनं तुल्यश्रियोरेतयोः, दंपत्योः समसर्वङःखसुखयोर्लावएयलीलानृतोः॥ वाली थर हती. अर्थात् ते नख अने मांसनी पेठे परस्पर गाढ अनुरक्त हता. ॥६६॥
निरंतर समान वे श्रानंद अने खेद जेमने, सरखां ने सुख श्रने कुःख जेमने, त. था तुख्य कांतिवालां अने लावण्य लीलाने धारण करनारां, तेम ज नेत्रनी पेठे साथे ज निशा अने जागृती जेमने एवां ते दंपती(नागसारथी श्रने सुलसा) नो श्रेष्ठ
For Private and Personal Use Only