SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra सुलसा० 11 12 11 www.kobatirth.org पर्वतने विषे नख थकी पडतां एवां मुक्ताफलोने ग्रहण करनारा जिल्लो मार्गमां सिंह- सर्ग६हो. नां पगलां सरखां बते “ हस्तीने मारनारो सिंह या मार्गे जाय वे अने बीजा सिंहो या मार्गे जाय बे. " एम बोले . ॥ ८४ ॥ वली ए वैजार पर्वतने विषे जिल्ल लोकोए सर्व प्रकारे वस्त्र रूप करीने बाकीनी त्यजी दीधेली, वली प्रासुक एवा धातु किरातवस्त्रीकृतमुक्तशेषा, न्यस्ताक्षराः प्रासुकधातुनीरैः ॥ सदा मुनीनां पठनक्रियानिर्देकत्वचोऽस्मिन् सेफलीनवंति ॥ ८५ ॥ तस्मिन् गिरौ रूप्य सुवर्णरत्तैर्विद्याप्रभावाद्विदधे त्रिशालान् ॥ चतुः प्रतोलीकपिशीर्षसारान्, कँकेल्लियुक्तान् कंपटैः पैटुः सः ॥ ८६ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (जल (गैरिकादिकना जल ) थी अक्षर लखायली वृनी बालो मुनिर्जने नित्य पठन क्रियाए करीने सफल थाय बे. अर्थात् वैजार पर्वत उपरना वृदोनी बालमां ( ताडप(त्रमां ) साधु पुस्तक लखीने जणे बे ॥ ८५ ॥ ते वैजार पर्वतने विषे चतुर एवा बडे कपटे करीने विद्याना प्रजावधी चार दरवाजा युक्त कांगरावाला अने अशोक For Private and Personal Use Only ॥ ए‍ ॥
SR No.020772
Book TitleSulsa Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidya Shala
Publication Year1899
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy