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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जे देव, राग द्वेपथी अंकित डे, ते कुदेव कहेवाय डे, श्रने जे गुरु परिग्रहमां श्रने श्रारंजमा | मन , ते कुगुरु कहेवाय . ॥६॥ निश्चे थालोकमां जे हिंसायुक्त धर्म , ते कुधर्म कहेवाय बे. माटे उपर कहेला ए कुदेव, कुगुरु अने कुधर्मथी मोह पामेला जीवो सं रोगक्षेषांकितो 'देवो, यः कुंदेवः से उच्यते॥ कुगुरूर्यः परिग्रहारंनमग्नो गुरुर्यदि ॥२६॥ हिंसान्वितोऽपि यो धर्मः, कुंधर्मः स नवेदिहे ॥ 'एनिविमोदिता जीवा, संसारे 'संसरंति 'द। ॥२७॥ वीतरागः पुनर्देवो, 'निर्ग्रथा गुरवस्तथा ॥ दयाप्रधानो यो धर्मः, सैम्यक्त्वमिदमुच्यते ॥२०॥ स्पष्टसम्यक्त्वदीपेन, 'निरस्याज्ञानजं तैमः॥ मोक्षमार्ग प्रपद्यते, जीवा लब्धविवेचनाः॥५॥ सारने विषे ब्रमण करे . ॥२७॥ वली राग रहित देव, निग्रंथ (परिग्रह रहित )गुरुङ, तेमज दयाप्रधान धर्म एज सम्यक्त्व कहेवाय डे. ॥२०॥ स्फुट एवा सम्यक्त्वरूप दीप-11 - For Private and Personal Use Only
SR No.020772
Book TitleSulsa Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidya Shala
Publication Year1899
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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