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सुखसा
॥
था संसारमा प्राणियोनुंजे मरण थाय ,ते मरण देहधारीनी प्रकृति ने अने जीवनसर्गएमो.
(जीव) ते विकृति . माटे तेमां जे कां स्थिरता पमाय तेज लाल जाणवो. तो तमे ५॥ घणो शोक शा माटे करो बो? ॥ ३३ ॥ श्रालोकने विषे प्रजात वखते जे वस्तु |
इह यन्म्रियते शरीरिनिः, प्रकृतिः सा विकृतिस्तु जीवनम् ॥ "स्थिरता यदि 'कापि लेन्यते, मैं तु लानः किम शोच्यतेतराम् ३३ उदये यदिहेदयते ध्रुवं, नैं तदेवास्ति तु मध्ववासरे॥ पँसते प्रंबला डॅनित्यता, अॅवि नावानिव रौंदसी नृशम् ॥ ३४ ॥ कुंशकोटिगतोदबिज्वत्परिपक्वजमपत्रटंतवत् ॥
जलवुडुदवारीरिणां, दणिकं देहमिदं चैं जीवितम् ॥ ३५॥ निश्चे देखाय , ते वस्तु मध्यान्ह वखते देखाती नथी. श्रा उपरथी निश्चय थाय ने
के, पृथ्वीने विषे राक्षसी सरखी महा बलवंत थनित्यता सर्व पदार्थोंने गली जाय M. ॥ ३४ ॥ देहधारीऊनो देह अने था जीवित, ए बन्ने पदार्थों मानना अग्रजागने ||
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