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हातमे विद्यमान बतां जे महा प्रनाववाली रात्री मने क्षणमात्रना सरखी थती
हती, तेज रात्री तमे थविद्यमान बतां पासे श्रावती यमनी जीन सरखी अत्यंत नयंकर देखाय . ॥ २४ ॥ यमराजना मार्गने विषे पथिक थएलो अर्थात मृत्यु पामेलो एवो पण कामदेव पोते पाठो श्रावीने पोतानी रति प्रियाने शुं नश्री भयो ?
में कथं पुनरेत्य मन्मथः, पंथि पांथोऽपि यमस्य 'संगतः॥ प्रिंयया सह कांत तत्त्वमप्यनुकंपां कुरु मैय्यमूहशीम् ॥२५॥ करकंकतकेशमार्जनं, 'प्रिय यन्मे "विहितं त्वया पुरा ॥
अधुनापि तदेव विद्यते, मॅगनानीश्वलेपनिश्चलम् ॥२६॥ अर्थात् मख्यो बे. माटे हे कांत ! तमे पण म्हारे विषे श्रा प्रकारनी अनुकंपा करो. अर्थात् तमे पण पालाश्रावीने मने मलो. ॥२५॥ हे प्रिय ! पूर्वे तमे पोतेज जे म्हारा कांकशीए करीने केश जेव्या हता तेज केशर्नु उलq हमणां पण कस्तूरीना रसना लेपे करीने युक्त होवाथी निश्चल . ॥६॥
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