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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अरे दुर्दैव ! जो म्हारा पुत्रोनी स्त्रीउने एकी वखते विधवा करवानी त्हारी बुद्धि न होत तो, सुरंग विना ए म्हारा पुत्रो लीलाए करीने एकी वखते सायेज केम पडे ?|| अर्थात् म्हारा पुत्रोनी स्त्रीउने एकी वखते विधवा करवानी हारी बुद्धि होवाथी सुरंगमा तेउनो तें साथेज नाश कस्यो. ॥ १५ ॥ श्रथवा गर ने बुद्धि जेणीनी अने दतदेव ने चैवं ते मतिः, समवैधव्यविधौ वैधूजने ॥ सैममेव विना सुरंगया, कैथमेते निपतंति लीलया ॥१॥ अथवा स्वयमेव निर्मितं, गैतबुझ्या मंयका हताशया॥ युगपत्सुतमृत्युकारणं, "किमु जैग्धा ऍटिकाः समं ने चेत् ॥२०॥ हैदहा ईतका कथं मुखं, स्वमंहं दर्शयितुं जने दमा । युगपन्मरणेन 'देसुता, नैवतां ब्रूत गतानुकंप्यताम् ॥१॥ हणा गयो ने श्राशय जेणीनो एवी में पोतेज ते एकी वखते पुत्रना मृत्युनुं कारण | निपजाव्यु , जो में देवताए श्रापेली गोली साथे न खाधी होत तो शुं श्राम || थात ? अर्थात् न थात. ॥ २० ॥ हे पुत्रो ! मने ए बहुज खेद थाय ने के, तमारा For Private and Personal Use Only
SR No.020772
Book TitleSulsa Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidya Shala
Publication Year1899
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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