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ते वात सांजलीने क्रोधथी होग्ने मसता, राता मुखवाला अने हाथने पृथ्वी । उपर पढाडता एवा चेटक राजाए तत्काल उठीने अने बखतर धारण करीने जेटलामां ए श्रेणिक राजा रूप शत्रु उपर तैयारी करवा मांडी, ॥ ॥ तेटलामां वीरांगद नामना सेनापतिए प्रणाम करीने कडं. 'हे देव ! खेद न करो,अने प्रसन्न थश्ने । निशम्य तच्चेटकनूपतिः क्रुधाऽधरं देशंस्तावमुखो देतावनिः॥ सुतं समुत्राय गृहीतकंकटोऽन्यषेणयद्यावर्दै, "रिपुंति ॥॥ प्रणम्य वीरांगद कैचिवांस्तदा, "विषीद मा देव विधाविहाऽदिश॥ प्रसद्य मां येन करोमि सैंत्वरं, जैनेन साध्ये हि कयं नूद्यमः॥१॥ ततः स्वहस्तार्पितबीटकेन से, पेण नुन्नोऽविशदाशु साहसी॥ रैथान सुरंगाध्वनि संकटेयतोऽवगत्य चक्रध्वनिना तैतर्ज चे ॥२॥ मने श्रा कार्यने विषे श्राशा श्रापो; के जेथी ते कार्य हुं फट करूं. कारण के, सेवकथी। साध्य (थश् शके) एवा कार्यने विषे राजाए तैयारी करवी ए कांश योग्य ? अर्थात् सेवकने योग्य कार्यमां राजाए उद्यम करवो न जोशए. ॥ २ ॥ पठी पोताना हा-Mail
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