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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुलसा० उत्पत्ति क्यांथी ? ॥ २५ ॥ जो आ कोई मनुष्य लोकनी उत्तम स्त्री होय, तो एमीनो सर्गभ्यो. वनावनार ते ब्रह्मा कोइ बीजो ज होवो जोइए, कारण के, कलावान् एवो पण कुमा॥ ५५ ॥ मनोवलकर कीणां रेशमी लूगडां वणवामां समर्थ केम होय ? अर्थात् नज होय. सार्वपि स्याद्यदि मानुषीवरा, तदाउँदसीयो विधिरैन्य एव सः ॥ hi दि कुंग्रामकुविंद ईश्वरो, नैवेत् कैलावानपि पैंदृकर्मणि ॥ २६ ॥ हृदीर्ति तं विस्मयमानर्मुच्च कैस्त्रिं मिनी स्माद पुनर्नरेश्वरं ॥ मंदीपते विस्मयसे कैथं नैशं यथास्ति रूपं लिखितं तथा नैं वै ॥ २७ ॥ इयं कैनी चेटकनूपतेः पुनस्तवैव योग्यो स्ति सुरूपतानृता ॥ सुवर्णमयो'रिव 'संगमोस्तु वीं, सँका मंदिवेति गंता यथागतम् ॥ २८ ॥ ॥ २६ ॥ ए प्रकारे हृदयमां अत्यंत विस्मय पामेला ते राजाने फरीथी परिव्राजिकाए कधुं. हे महीपते ! केम अत्यंत विस्मय पामो बो ? कारण के, हजु जेवुं रूप बे, तेवुं तो लख्युं नथी. ॥ २७ ॥ श्रा चेटक राजानी न्हानी पुत्री बे. वली उत्तम रूपने For Private and Personal Use Only ॥ ५५ ॥
SR No.020772
Book TitleSulsa Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidya Shala
Publication Year1899
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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