SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिका, मनमा एम विचार करवा लागी के, पोतानी पंमिताइना मदे करीने गर्व पा मेली श्रा सुज्येष्टाने हुँ कोई शोक्यना पुःखमां नां. ॥ २७ ॥ पढी केवल मत्सरवाली ते परिव्राजिका, श्रादरथी पट्टने विषे रंगथी सुज्येष्टाना प्रतिबिंबने श्रालेखीने पनी नमती बती (राजगृह नगरमां) श्रेणिक राजा पासे गइ. त्यां श्रेणिक राजाथी मान ततस्तदीयं प्रतिबिंबोदरादिलेख्य वर्णैः फलके भ्रमंत्यसौ ॥ Ma अंगाउँपश्रेणिकमैकमत्सरा, त्वौप्य मानं नपतेरँदर्शयत् ॥१०॥ निरीक्ष्य तपमधीश्वरो नुवश्चिरं निदध्यौ हदि रूंपविस्मयात्॥ पट्टे किमेपा लिखिता तिलोत्तमा, स्मरप्रिया वाथ मुंजंगकन्यका ॥२०॥ पामीने पड़ी तेणीए ते पट्ट राजाने देखाड्यो. ॥ १५ ॥ पृथ्वीना अधिपति श्रेणिक राजाए ते रूपने जोश्ने तेना आश्चर्यथी हृदयमा घणा वखत सुधी विचार कस्यो के, पट्टने विष श्रालेखेली श्रा शुं तिलोत्तमा डे ? अथवा स्मरप्रिया ( रति ) के, नाग | कन्या ? के, कोई जलदेवता अथवा वनदेवता, आकाशदेवता के, हरवल्सना For Private and Personal Use Only
SR No.020772
Book TitleSulsa Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidya Shala
Publication Year1899
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy