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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वित्र) एवं अंतर (हृदय) घणाय जले करीने क्यारे पण शुद्ध धतुंज नथी. ॥ १३ ॥ कधुं वे के यम नियम रूप जलथी पूर्ण, सत्य रूप प्रवाहवाली, शीलवत रूप तटवाली अने दया रूप तरंगोवाली श्रात्मा रूप नदी वे. हे पांकुपुत्र ! ते नदीने विषे स्नान कर. कारण के, अंतरात्मा जलथी शुद्ध यतो नथी. श्रर्थात् अंतरात्मा तो उपर कहे ली नदीना जलथी ज पवित्र याय बे ॥ १४ ॥ हे परित्राजिके ! पापी मनुष्यो प्रात्मानंदी संयमतोयपूर्णा, संत्यावहा शीलतटा देयोर्मिः ॥ तत्राभिषेकं कुरु पांफुपुत्र, नैं वारिणा शुध्यति चैांतरात्मा ॥ १४ ॥ ये जैले क्रियते निमनं, सपापदेदैर्निजपापमुक्तये ॥ निबोध रक्तादि पेंटस्य धावनं, तंत्र रेक्तांनसि शुक्लचता ॥ १५ ॥ पोतानुं पाप मूकावाने श्रर्थे जलने विषे जे स्नान करे वे, ते श्रालोकमां वस्त्रनी उज्वलता इछनारा पुरुषे रुधिरथी राता थएला पाणीने विषे वस्त्रने धोवा जेवुं ठे ! एम जाए. अर्थात् अनेक जीववाला पाणीमां स्नान कर ए कांइ पाप मूकावाने माटे नथी यतुं, परंतु पाप बंधावाने माटे थाय छे. ॥ १५ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020772
Book TitleSulsa Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidya Shala
Publication Year1899
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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