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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ते वखते ए चेटक राजाने पोताना स्वरूपे करीने तिरस्कार करी बे नागकन्या जेणी ए एवी, जिनेश्वर जगवाने कहेला तत्वार्थना विचारमां श्रादरवाली, उत्तम लक्षण वाली, सर्व प्रकारनी कलामां निपुण, निरंतर शृंगाररसना एक मंदिर रूप, मनोहर, जे तदास्तोऽस्य सुते कुमारिके, स्वरूपनिर्भत्सितनागकन्यके ॥ सुवासिनी पंचसुतान्यत्तरे, जिनेंद्रतत्वार्थविचारसादरे ॥ ३ ॥ संलक्षणे सर्वकलाविचक्षणे, सदैव शृंगाररसैकमंदिरे ॥ मनोहरे 'यौवननारनंगुरे, सुजेष्टिकाचित्रण के निख्यया ॥ ४ ॥ युग्मम्. यदा कiपि तपस्विनिनुवा, त्रिदंमकुंमीजलपीविकाधरा ॥ धातुरक्तांबरधारिका शिखान्विता स्वशास्त्रार्थविशेषपोषिका ॥ ५ ॥ यौवनना जारे करीने रम्य धने सुवासिनी एवी पांच पुत्री पठीनी सुज्येष्टा श्रने चि |णा नामनी वे कुमारिका पुत्री हती. ॥ ३ ॥ ४ ॥ हवे एकदा त्रिदंग, कमंगलु, ज ल ने माजना श्रसनने धारण करनारी, सुधातु ( गेरु) श्री रंगेलां रातां वस्त्रने धा १ प्रभावती, शिवा, मृगावती, ज्येष्टा अने पद्मावती. For Private and Personal Use Only
SR No.020772
Book TitleSulsa Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidya Shala
Publication Year1899
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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