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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जओ - चिंतामणिव दुलहं लहिउं खणभंगुरं च मणुअत्तं । धम्मो चिय कायवो सासयसिवसुक्खसंजणओ ॥ १५५ ॥ ता वारस विहतव चरणजलणजालावलीहिं कम्मवणं । दहिऊण जयपडागा गहियबा तिहुयणम्मि मए ॥ १५६ ॥ इय चिंतिऊण सम्मं विजयकुमारेण विजियमारेण । सुट्ठियगुरुस्स पासे पडिवण्णा तेण पव्वज्जा ॥ १५७॥ कुणमाणो तितवं एगलविहार पडिमपडिवण्णो । उप्पण्णओहिनाणो इहाऽऽगओ विहरमाणो सो ॥ १५८ ॥ जो आहवमल्लसुओ जयवम्मनराहिवस्स वरभिच्चो । जइधम्मं पडिवण्णो सोऽहं वयकारणं एयं ॥ १५९ ॥ इय सोउं कमलाए धाईइ सुदंसणाइ सीलवई । देवच्चणं कुणंती गंतुं वद्धाविया सहसा ॥ १६०॥ अम्मो ! सो तुज्झ वरो विजयकुमारो खु इत्थ निवसेइ । उग्गं तवं कुणंतो उप्पिच्छह किं वियाणं ? ॥ १६९ ॥ भणियं सीलवईए अलं हले ! सोवहासवयणेहिं । वायाए वि हु पेमं एरिसदुक्खाई दरिसेइ ? || १६२ || इय जंपंती एसा तीइ समं आगया तहिं दहुं । विजयकुमारं तवलच्छिभूसियं नमइ भत्तीए ॥ १६३ ॥ दाऊण धम्मलाभं भणियं मुणिणा सुसाविए ! धण्णा । संजमकर तुमं मह सुपुचपुण्णेहि संघडिया ॥ १६४ ॥ तो सीवलई जंपइ तुब्भे लहुकम्मुणो पहु ! सयं पि । अम्हारिसा इहं पुण निमित्तमित्तं जइ भवामो ॥ १६५ ॥ भणियं सुदंसणाए कायां कहसु जं मए एवं । जेण करणं न हवइ पुणो वि दुक्खं अइसुतिक्खं ॥ १६६ ॥ भणइ मुणिंदो भद्दे ! जइ एवं ता करेहि जिणधम्मं । पाविज्जइ जेण अणंतमक्खयं सासयं सुक्खं ॥ १६७॥ सो पुण चउहा धम्मो जिणेहि भणिओ तिलोयमहिएहिं । दाणं सीलं च तवो य भावणा तह चउत्थी उ ॥ १६८ ॥ तत्थ य दाणं तिविहं नाणपयाणं च अभयदाणं च । धम्मोवग्गहदाणं च नाणदाणं पुणो एवं ॥ १६९ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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