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खणियसिलं, धावंतं नियइ कत्थई महिसं । कत्थइ चवलं कुवियं, कविजूहं नियइ रत्तच्छं ॥ ६२ ॥ फणफुकारमुयंतं, दुष्पिच्छं नियइ कत्थइ भुयंगं । कत्थ वि य किलकिलंतं, वेयालं नियइ विगरालं ॥ ६३॥ कत्थइ रउद्दसद्दं, नियइ पिसायं बिभीसणागारं । कत्थइ कत्तियहत्थं, नियइ महासाइणिसमूहं ॥ ६४॥ एवं समंतओ तं, सावयवेयालरुद्दसद्देहिं । पडिसद्ददीहरोरालि भीसणं पवयं नियइ || ६५ || पवणाहयपत्तं विव, भएण कंपंतसबगत्ता सा । चिंतेइ असरणाऽहं किं काहं ? | कत्थ वच्चामि ? ॥ ६६ ॥ हा विहिनिडुरनिग्घिण !, मुक्का एगागिणी तए कत्थ ? । किं कोइ मए कइया, तुझ कओ गरुयअवराहो ? ॥ ६७ ॥ एवं पि जणो दुक्खं, सहसा सहि न सक्कए पायं । कह हेलाए ठवियाई मह तए सयलदुक्खाई ? | ॥ ६८ ॥ अहवा हयविहि! गहिय जणस्स पासाओ सबदुक्खाई । वीसंभमुवगयाए, समप्पियाई मह तए किं ? ॥ ६९ ॥ इय एवं सा भयवेविरी वि गुरुआवयासु पडिया वि । धीरवइ कह वि नरवर ! अत्ताणं अन्तणा चेव ॥७०॥
तंजहा - किं अन्नभवे नियमो, काऊण न पालिओ मए विहिणा ? नासो य कस्स वि मए किं अवहरिओ हयासाए ? ॥७१॥ वीसंभमुवगओ वा, किं को वि हु वंचिओ मए कइया ? | अहवा कया वि कस्स वि कुमई कवडेण मे दिन्ना ? ॥७२॥ अहवा किं जणणीए, परिहासेणावि पियअवच्चाई । विच्छोइयाई किं वा आहरणं कस्स वि हरियं ? ॥ ७३ ॥ जं पुचभवनिबद्धं तं खलु वेयंति पाणिणो सबे । ता सहियवं सवं रे जिय ! किं विलविएणेवं ? ॥ ७४ ॥ जह संपयाइ हरिसो, | विवेयवंतेहिं नेव कायचो । तह आवयागएहिं वि न विसाओ गरुयसत्तेहिं ॥७५॥ इय सा विवेयकलिया, सीलवई ३ नासो० न्यासः । ४ विरहितानि ।
१ ओराली० शब्द । २ वेविरी० वेपिश्री कांपनेवाली ।
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