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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirtm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साहूण देइ दाणं, करुणाए दुत्थियाणंपि ॥१९॥ तस्स य वद्धावणए, बच्चइ आणंदिओ नयरलोओ। आवंतजंतमग्गणगणेण लब्भइ न मग्गो वि ॥२०॥ कमलाधाई भणिया, तं नाउं देवीचंदलेहाए । एयं वद्धावणयं, सिट्ठिघरे केण कजेणं?12 |॥२१॥ सा भणइ इमस्स सुओ, सोमो नामेण सोमसमवयणो। अज्जियपभूयविहवो, पत्तो कुसलेण अज इहं ॥२२॥ देवीइ.५ तओ भणिया, सा तुज्झवि तत्थ जुज्जए गमणं । उचियपवित्तिविमुक्को, पावइ गरुओवि जमवणं ॥२३॥ हा उक्तं च-आरङ्काद्भूपतिं यावदौचित्यं न विदन्ति ये। स्पृहयन्तः प्रभुत्वाय, खेलनं ते सुमेधसाम् ॥१॥ एवं आइट्ठाए, कम-12 लाए गंतु चंदसिट्टी सो।वद्धाविऊण तुरियं, आगंतुं तीइ विण्णत्तं ॥२४॥ सामिणि! धणियस्स घरे, माइजइ नेय पउरलोएहिं । देवीइ तओ भणियं, भद्दे ! किं कारणं इत्थ? ॥२५॥ सा भणइ तत्थ एगा, समत्थइत्थीपसत्थगुणकलिया। तमसेस जणो वच्चइ, इत्थीरयणं पलोएउं ॥२६॥ सा पुण जुवई सामिणि!, इहाणिया तेण सिट्ठिपुत्तेणं । अमरच्छराण परिहवपयाहवं जा वहइ स्वेण ॥२७॥ नवि हसइ नेव जंपइ, पलोयए नेय पमुइयंपि जणं । हरिणिव जूहभट्ठा, चिट्ठइ अवहरियचिट्ठा ६ सा ॥२८॥ जा पुण सुंदरी मुंदरुत्ति नामेणं भण्णइ जणेहिं । सा सायरंपि पुट्ठा, न कहइ नामाइयं निययं ॥२९॥ जो पुण तीए रूवं, निएइ सो लहु पणट्ठमणलक्खो । पासडिओ य चिट्ठइ, निच्चिट्ठो चित्तलिहिओ व ॥३०॥ तबयणजणियगुरु-15 कोउयाइ देवीइ पभणियं कमले!। जइ एवं ता वच्चसु, पुणो वि चंदस्स भवणम्मि ॥३१॥ सिट्ठिस्स तस्स पुत्तो, सपरियणो टू लहु पभायसमयम्मि । आमंतसु तीइ समं, भोयणकजण मह गेहे ॥३२॥ देवीवयणेण तओ, गंतूणं तत्थ तीए कमलाए । सो सिट्ठिसुओ सोमो, निमंतिओ परियणसमेओ॥३३॥ जाए पभायसमए, सरसाए रसवईइ विहियाए । आहूओ सप्प ACANCHAR For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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