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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org ROSES HORROR सुदंसणा तहाहि-संकाइसल्लरहिओ थिज्जाइगुणो दयाइवरलिंगो । अविचलसम्मत्तधरो दंसणपडिमं धरइ मासं ॥२५४॥ पुवु- मूलुट्टिचरियम्मित्तगुणसमग्गो बीयाइ दुमासऽणुपए धरइ । तइयाइ तिणि मासे सामइयं कुणइ संझदुगे ॥२५५॥ चउमासे पबदिणे दप्पबंधप्प पिडिपुण्णपोसहं चउत्थीए । पंचमियाए पोसहणिसिपडिमं कुणइ पणमासे ॥२५६॥ छट्ठीए छम्मासे मउलिकडो दिवस- ख्वगनाम ॥१३३॥ भोइ असिणाई । बंभी य सत्तमीए सगमासे बज्जइ सचित्तं ॥२५७॥ आरंभ सयं करणं अट्ठमिया अट्टमास वजेइ । सोलसमो 1 नवमी पुण नवमासे पेसाऽऽरंभे विवजेइ ॥२५८॥ खुरमुंडिछिहलिउद्दिट्ठवजओ दसमियाइ दसमासे । णिहिपुच्छंतणियाणं ८ उद्देसो । जइ जाणइ कहइ नवि इहरा ॥२५९॥ खुरमुंडलोयरयहरणपत्तधारी अच्छिण्णममकारो । समणुब सयणगेहे विहरइ इक्काM रस उ मासे ॥२६०॥ इय तुलिउं अप्पाणं कमेण इकारसाहि पडिमाहिं । के वि सउण्णा सम्मं पवजं संपवज्जति ॥२६॥ इयरे पुत्ताइसिणेहभावओ पुण उति गिहवासं । उचियत्तमप्पणो जाणिऊण सुइसुहसमायारा ॥२६२॥ एवमणुट्ठाणमिणं | पडिमापडिबद्धमक्खियमसेसं । चूडारयणप्पडिमं सावयवयधम्मकम्मस्स ॥२६३॥ एयं अणुट्ठिऊणं जे पडिवण्णा जिणिं-12 दवरदिक्खं । दुस्सहपरीसहुच्चाऽऽहियं पि न चलइ मणो तेसिं ॥२६४॥ धण्णाणं चिय एवंविहेसु किच्चेसु अभिरमइ बुद्धी। पावंति य पजंतं धण्णञ्चिय पत्थुयत्थस्स ॥२६५॥ करकमलगोयरगया ताणं चिय परमसुक्खसंपत्ती। णित्थिण्णो वित्थिण्णो दी वि तेहि रुद्धो भवसमुद्दो ॥२६६।। तेहिं चिय संपत्ता विजयपडागा तिलोयरणरंगे । एयाणुहाणपुरस्सरो य जेहिं गहिओ समणधम्मो ॥२६७॥ इय सोउं परितुट्ठो जयघोसणिवो जयावलीइ समं । बारसक्याइ गिण्हइ दंसणमूलाइ पहुपासे ॥२६८॥ तह य अभिग्गहमेयं तिविहं पूयं तिसंझमवि णिचं । तिजयगुरूण जिणाणं तिगरणसुद्धो करिस्सामि ॥२६९॥ ॥१३३॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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