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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra सुदंसणाचरियम्मि ॥ १२९ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुलदेवयाइ भणियं एवंविहधम्मणिच्चलमणाए । तेलुक्कं पि सहायं किं पुण अम्हारिसी तुज्झ ? ॥ १२९ ॥ इक्कारसगुडियाओ तहवि हु सुहकारिणीउ एआओ । गिण्हसु महाणुभागे ! भुंजसु सुयसंतइणिमित्तं ॥ १३० ॥ तीइ अणिच्छंतीइ वि बंधित्ता ताउ उत्तरीयंते । वियसियवयणा णमिडं अदंसणमुवगया देवी ॥१३१॥ सीलमईए कहिओ सिट्टिस्स जहडिओ सबुत्ततो । सो पभणइ एयाओ कमेण भुंजसु सुहमुहुते ॥ १३२ ॥ ती उत्तं जावइओ सुयाइसंगो जियस्स तावइओ । बंधो कम्मस्स दुहं च ता अलं नाह! गुडियाहिं ॥ १३३ ॥ एवं ति भणइ सिट्ठी तहा वि लोगठिई इमावत्थि । जं असुयं दाइयदुज्जणेहि लुंपिज्जए गेहं ॥१३४॥ गेलण्णे बुडत्ते च पुत्तरहियाण को कुणइ सारं ? । तह णियकारियजिणभवणबिंबवरपुत्थगाईणं ॥१३५॥ बहुरिद्धिसमिद्धाण वि पच्छा जाणइ न कोइ णामं पि । तं सुंदरि ! उवभुंजसु कमेण इकिकियं गुडियं ॥ १३६ ॥ ता तीइ चिंतियमिणं समं स मीणब को णु पइवरिसं । अप्पं णडिज्जइ य तीइ ताउ गिलियाओ सयलाउ ॥ १३७॥ भविय - वयाणिओगेण तह य दिवष्पभावओ चेव । इकारसवरपुत्ता तीए गब्भे समुब्भूया ॥ १३८ ॥ वहुंतेहिं तेहिं तीसे णिस्सीम | वेयणा जाया । ता सुमरियाइ कुलदेवयाइ सा खिष्पमवहरिया ॥ १३९॥ सुपसत्थदोहलाए तीए पडिपुण्णवासरेहि इमे । वररुवलक्खणधरा जणणयणानंदणा जाया ॥ १४०॥ हरिसभरणिन्भरेणं तो सिरिपुंजेण गुरुविभूईए । वद्धावणयं काउं कयाइ इय तेसि णामाई ॥ १४१ ॥ धणदेवो धणरक्खिय तह धणपालो तहेव धणमित्तो । धणगुत्तो धणधम्मो तह य धणाइच्च धणसम्मो ॥ १४२ ॥ धणवेगो धणचंदो धणहरी एवं कमेण कयणामा । धाईहि वड्डिया ते संजाया अट्ठवारिसिया ॥१४३॥ पिउणा गुरुरिद्धीए लेहायरियस्स अप्पिया एए। तेण वि सकलकलाओ सुहेण अज्झाविया सिग्धं ॥ १४४॥ For Private and Personal Use Only मूलुद्दिडप्पबंधप्प रूवगनाम सोलससो उद्देसो । ॥ १२९ ॥
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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