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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | सुदरिस सुदंसणा-लसणाए देवीए हिययभावकुसलाए । कयसंकेयाइ इमं भणियं अमरीइ एगाए ॥२८॥ ससुरासुरम्मि लोए पिच्छह मोहस्स चरियम्मि विलसियं जम्हा । विसयसुहलालसामिच्छतिमिरपडलंतरियणयणा ॥२९॥ पिच्छता विन पिच्छंति के वि हियमप्पणो महा-राणाए सहो॥११९॥ मूढा । अहवा कित्तियमेयं पमायमइरापरवसाणं ॥३०॥ अह कयसंकेयाए अवराए अच्छराइ इय भणियं । किं पि न चुजंयरचंडवेजं इह घणरागद्दोसवसगजिया ॥३॥ पुण पुण वि भणिजंता वि केइ हियमत्तणो नहि सुणंति । अहवा कित्तियमेयं घण-ICT गविवाहचिक्कणनिविडकम्माणं ॥३२॥ इय ताण अच्छराणं सोवालंभं निसामिडं वयणं । सो चंडवेगखयरो चिंतिउमेवं समाढत्तो णणाम च|॥३३॥ किमहो! एस महप्पा अरिहंतो देवयाविसेसोऽथ । दिट्ठो व निसुणिओ वा कयावि कत्थ वि मए पुर्वि ॥३४॥ उदसमो देवीसुदरिसणाए अमरवहूहि पि एरिसी कित्ती । इह जीइ पसंसिज्जइ सा मए कत्थई णिसुया ॥३५॥ तह य किमेयं अम उद्देसो। शरच्छराहि भणियं जमित्थ मोहंधा । हियमप्पण्णो न पिच्छंति के वि न सुणंति घणकम्मा? ॥३६॥ एवं विचिंतयंतस्स तस्स विज्जाहरस्स बोहकए। भणियं सुदरिसणाए अत्तहियं भद्द! णिसुणेहि ॥३७॥ तइया हं बोहिकए भणिया णु तए सुबुज्झ ता इण्डिं । आसि तुमं पुवभवे पुत्तो सिरिसिंहलेसस्स ॥३८॥ संद्दिष्टुं च तए मह वसंतसेणेण पत्तरजेण । जह पडिबोहेयवो अहं तए इय तया भणियं ॥३९॥ देवीसुदरिसणाए वयणमिणं खेयरो सुणेऊण । उप्पण्णजाइसरणो भणइ कयत्थो | कयत्थो हं ॥४०॥ दुग्गइगत्तावडिओ जिणिंदमयरज्जुणा तए देवि! । उद्धरिओ जह सहसा धम्मं पि तहा कहसु मज्झ ११९॥ ॥४१॥ इत्थंतरम्मि तइया सित्तुंजे तियसकयसमोसरणे । भवियपडिबोहणकए वीरजिर्णिदो समोसरिओ ॥४२॥ विजाहरो वि देवीसुदरिसणाए समं तहिं पत्तो । भत्तीइ ते जिणिंदं थुगंति तिपयाहिणं काउं॥४३॥ SASSASSASSIUS CAUSEUROCCUSA For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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