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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SANGACASCURRECRUSALES | निच्चं पि सरइ महुरस्सरेण अमयं व सिद्धंतं ॥६४॥ इय सा संवेगपरा पंचणमुक्कारसुमरणपहाणा । वइसाहमाससिय-15 पंचमीइ पंचत्तमणुपत्ता ॥६५॥ ईसाणदेवलोए उप्पण्णा सा महिड्डिया देवी । अमरच्छरपरियरिया थुवंती देवदेवीहिं ॥६६॥ अह सा सीलवई वि हु तबिरहाणलपलित्तसवंगा । चाऊण सवसंगं सुगुरुसमीवम्मि पवइया ॥६७॥ तेहि वि समप्पिया सा पवत्तिणीए इमा समं तीए । सह विहरती सम्म पढइ सुयं कुणइ तिबतवं ॥६॥ पायं पञ्चासण्णं भरुयच्छपुरस्स विह-18 रइ एसा। सिरिसवलियाविहारस्स भत्तिराएण गुरुएण ॥६९॥ इय सा सुइरं कालं अकलंकं पालिऊण तवचरणं । अणसणमंते काउं सुदंसणामग्गमणुलग्गा ॥७०॥ मरिऊण समाहीए उप्पण्णा सा वि तत्थ ईसाणे । पवरविमाणे देवी महि[डिया भूरिपरिवारा ॥७॥ ता दो वि तत्थ मिलियाउ पुवभवसंगयाउ सुरसुक्खं । माणंतऽणुरत्ताओ अविउत्ताओ सयाकालं | ॥७२॥ कइया वि जंति गंदीसरम्मि दीवम्मि सपरिवाराओ। अट्ठाहियाउ महिमा कुणंति ता चेइएसु तहिं ॥७३॥ कइया वि₹| मेरुपचयपमुहेसु महीहरेसु पवरेसु । सिद्धाययणेसु कुणंति दो वि देवीउ पूआओ ॥७४॥ कईया वि जंति अट्ठावयम्मि | सित्तुंजसेलसिहरम्मि । अण्णेसु वि तित्थेसुं कुणंति पूर्य अणिच्चेसु ॥७५॥ सिरिसीमंधरसामियपमुहाण जिणाण विहरमाणाणं । | वच्चंति समोसरणे सुगंति पहुदेसणं तत्थ ॥७६॥ कइया विजंति जम्मणमहिमाइएसु जिणवरिंदचंदाणं । सययं पुण भरुयच्छे मुणिमुच्चयणाहभवणम्मि ॥७७॥ तत्थ य सचिड्डीए सुरतरुकुसुमाइएहि जिणपूयं । काउं भत्तिभरेणं कुणंति णिच्चं पि | पिच्छणयं ॥७८॥ इय ताओ दो वि देवीउ देवगुरुपायपूयणपराउ। तह सुरसुहकलियाओ गयं पि कालं न याति ॥७९॥ इय सुरिदसणकहाए विवेगिसंवेगरंगसालाए । सुदरिसणासीलवईसग्गगमो तेरसुद्देसो ॥४०॥[ इइ तेरसमुद्देसो] CACASSACREGARCANESAMAR For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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