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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit सुदंसणा- दिति दाणं धरंति सीलं च तिगरणविसुद्धं । भावंति भावणाओ फुरंतसंवेगनिवेया ॥९४०॥ इय देसओ उ सम्म पालियनारयणत्तयचरियम्मि रयणत्तयं चिरं कालं । कालम्मि समावडिए पडिवण्णा अणसणं दो वि ॥९४१॥ आराहिऊण सम्म तमिकमासं समाहिणा|8| स्सरूवष्य॥१०८॥ मरिउं । ईसाणदेवलोए इंदसमाणा सुरा जाया ॥९४२॥ दो सागरोवमाई अहियाई तत्थ दो वि अविउत्ता । भुंजंति दिव- रूवग नाम भोए पुखभवन्जियसुकयवसओ ॥९४३॥ वसहद्धयस्स जीवो तत्तो चविड इहेव भरहम्मि । किकिंधपुरे जाओ सुग्गीवो दसमुद्देसो। खेयराहिवई ॥९४४॥ इत्थेव दाहिणड्डे मज्झिमखंडे अउज्झणयरीए । इक्खागुकुले दसरहरण्णो अपराजिया देवी ॥९४५॥ चउपवरसुमिणसूइयबलजम्मो सग्गओ चुओ तत्तो।पंकयमुहस्स जीओ उबवण्णो तीइ कुच्छीए ॥९४६॥ पडिपुण्णवासरेहि सुमुहुत्ते जणियजणमणाणंदो। पउमुत्ति विहियनामो सो जाओ अट्ठमो सीरी॥९४७॥ एसो धणदत्तजिओ वसुदत्तजिओ उ भमिय तिरियगई । पउमस्स सीरिणो लक्खणु त्ति जाओ लहू बंधू ॥९४८॥ सिरिकंतजिओ वि भवं भमित्तु तिरियतणम्मि भूरिभवे । थीलोलो पडिविण्ह उप्पण्णो सो दसग्गीवो॥९४९॥ जा पुण गुणवइकण्णा सा वि हु भमिऊण भूरिभवगहणे । धूया जणयनिवइणो संजाया जाणईनामा ॥९५०॥ सा पउमेण परिणिया अहऽग्णया दसमुहेण सा हरिया। तीइ कए जुझंतो पडिविण्ह निहणिओ हरिणा ॥९५१॥ पउमेण समं पीई जाया सुग्गीवखेयरिंदस्स । अविउत्तेहिं| तहिं सुइरं परिपालियं रज्जं ॥९५२॥ भववासविरत्तेणं सुग्गीवेणं कयाइ गुरुपासे । पञ्चज्जा पडिवण्णा पउमेणं वि भाय ॥१०८॥ |विरहेण ॥९५॥ तो सबपयत्तेणं णाणं तह दंसणं चरित्तं च । आराहियं तह जहा तम्मि भवे निघुया दो वि ॥९५४॥ ट्राएवं संखेवेणं चरियं सुग्गीवपउमनिवईणं । भणियं विसेसओ पुण नायवं पउमचरियाओ ॥९५५॥ इय नाउं माहप्पं AASRHIRSAGAR For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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