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सुदंसणा- चरियम्मि
॥१०७॥
सो कीलंतो सिच्छाइ इओ तओ परिभमंतो । तं ठाणं संपत्तो जत्थ स गोणो पुरा हुतो ॥९०९॥ चिंतइ य कहिं कइया दारयणत्तयइमो पएसो पुरा वि मे दिट्ठो । इय ऊहापोहपरो जाईसरणं समणुपत्तो ॥९१०॥ इह चिण्णं इह पीयं इहासियं इत्थ स्स रूवप्पभंतमिह सुत्तं । इच्चाइ पुषभवियं सम्म सुमरामि नियचरियं ॥९११॥ किंतु न मुणेमि जेणं दिण्णो मह परमबंधवेणेव ।18/स्वग नाम
अमयसमो नवकारो करुणारससायरेण तयं ॥९१२॥ जस्स पभावेण मए आजम्मं अकयसुकयलेसेण । रोरेण व पवर-दिसमुद्देसो। कानिही रज्जसिरी पाविया एसा ॥९१३॥ तं परमगुरुं परमोवयारिणं सबहाऽभिगमणिज । अमुणिनु अपूइत्ता हा! कह | हानिरिणो भविस्सामि? ॥९१४॥ I अण्णं च-तिच्चिय गरुया पुरिसा अणुवकए जे कुणंति उवयारं । पञ्चुवयारे वि न जे कउजमा का गई ताणं? ॥९१५॥ तो तं कहमवि नाउं दिण्णाए तस्स पुषभवगुरुणो । रज्जसिरीए एयाइ नूण मह निधुई होही ॥९१६॥ इय चिंतिउं नियत्तिय उज्जाणाओ गिहम्मि गंतूणं । वसहद्धएण कहिओ वुत्तो सो निवाईणं ॥९१७॥ रण्णा भणियं मा होसु उस्सुओ वच्छ! तुज्झ चरिएणं । चित्ते लिहिएण सुहं स नज्जिही तुज्झ पुबगुरू ॥११८॥ तो वसहृदयकुमरेण तम्मि नंदणवणम्मि सुविलासं । कारवियं जिणभवणं तुंगत्तणविजियसुरसेलं ॥९१९॥ तम्मि य कम्मि पएसे चित्ते लिहिओ स तारिसो वसहो। सुइमूले पासट्ठियनरेण दिजंतनवकारो॥९२०॥ भणिया य निउत्तनरा जो कोइ निरिक्खिउं इमं चित्तं । पुच्छइ लिहियं केण वि मेलियबो स मज्झ लहुं ॥९२१॥ इत्तो य पंकयमुहो कयाइ तत्थाऽऽगओ जिणगिहम्मि । दट्टणं तयं चित्तं सुवि-16॥१०७॥ | म्हिओ माणसे बाढं ॥९२२॥ पुच्छइ निउत्तपुरिसे आलिहियं केणिमं ति ते गंतुं । कुमरस्स कहति तयं सो वि हु लहुं आगओ
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