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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandir पावइ दुक्खं विओगसंजोगजमणंतं ॥६४५॥ ता पहु! परमत्थेणं दुहरूवं दुक्खहे विसयसुहं । मुत्तुं परलोगहिए धम्मे चिय उज्जम कुणसु ॥६४६॥ पुणरवि भणइ नरिंदो वयंस! मम इच्चिरं हिएसी वि । संपइ केण निमित्तेण मज्झ चिट्ठसु तुम अहिए ॥६४७॥ निस्संसयमुवलद्धे जं मुंचावसि समं इमे भोए । णूणमणागयसंदिद्धलाभभोगाण कजेण ॥६४८॥ इत्थंरम्मि दलद्धावसरो छंदाणुवत्तओ पहुणो । संभिण्णसोअमंती वयणमिण भणइ सवणसुहं ॥६४९॥ देव! इमो खलु मंती मोया-14 वितो तुमेहि दिट्ठसुहं । अद्दिट्ठसुहासाए जंबुक इव सोइही सुइरं ॥६५०॥ अह भणइ सयंवुद्धो साहसु संभिण्णसोअ! को णु इमो? । सो जंपइ एगाए दरीइ निवसइ सियालजुवा ॥६५१॥ सो लहिय मंसपेसिं कत्तो वि मुहेण तं च चित्तूणं । जा भमइ नईतीरे ता पिच्छइ निग्गयं मच्छं ॥६५२॥ चिंतइ मह भक्खमिमो सुइरं होहि त्ति मुत्तु तं मंसं । जाव सियालो धावइ नइमज्झे ता गओ मीणो ॥६५३॥ ता जंबुओ नियत्तिय पित्तुमणो तं पहाविओ मंसं । जा ताव तयं चित्तूणं सवलिया उडिया गयणे ॥६५४॥ तत्तो दुण्ह वि चुको अह सोअइ जंबुओ चिरं एसो । भद्द! सयंवुद्ध ! तुमं सोइहिसि तहा। इय कुणंतो ॥६५५॥ अह भणइ सयंबुद्धो संभिण्णस्सोअ! तुह इमं वयणं । को मण्णिज्ज सयण्णो पणंगणाणं व चाडुगिरं ॥५६॥ धणसयणगिहाईणं अणिच्चयं जाणिऊण सुविवेया। पचज पडिवण्णा धीरा भोगे परिच्चइउं ॥६५७॥ पुण-IN रवि भणइ कुद्धो संभिण्णस्सोअणामओ मंती । तं सि सयंबुद्ध ! जडो असमयपत्तं उवइसंतो ॥६५८॥ जाणइ सबो वि3 जणो होही मरणं ति तो मसाणम्मि । पढम चिय गंतूणं किं पेयघरम्मि सोय ? ॥६५९॥ जह सुयइ उड्डपाया टिदिभिया सकर्णः-विद्वान्। ACCMCALCULAMAUSAMANCE For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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