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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra सुदंसणाचरियम्मि ॥ ८४ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तबंधीओ ॥२०७॥ तो परिवडंतसम्मो, मिच्छमपत्तो स होइ सासाणो । तो होइ मिच्छदिट्ठी पुंजाभावा न उण मिस्सी ॥ २०८ ॥ भणियं कप्पभारसे - आलंबणमलहंती जह सट्ठाणं न मुंचए इलिया । एवं अकयतिपुंजो मिच्छं चिय उवसमी एइ ॥२०९॥ तहा मिच्छत्ता संकंती अविरुद्धा होइ दोसु पुंजेसु । मीसाओ वा दोसु सम्मा मिच्छं न उण मीसं ॥ २१० ॥ खाओवसमोवसमियसम्माणं भण्णए अह विसेसो । उवसमगो नो वेयइ पएसओ वा वि मिच्छत्तं ॥ १११ ॥ उवसंतं जं कम्मं न तओ कढइ न देइ उदए वि । न य गमइ य परपगई न चेव उकड्डए तं तु ॥ २१२|| कलुस व खओवसमी, पसंतसलिलं व उवसमियसम्मी । खाइयसम्मदिट्ठी नायबो विमलसलिलं व ॥ २१३॥ कम्मग्गंथमएणं तिविहं पिहु तक्खणेण सम्मन्तं । लहिय वरनाणचरणा मरुदेवीसामिणी सिद्धा ॥ २१४॥ तहाहि — अत्थित्थ जंबूदीवे अवरविदेहेऽपराइया नयरी । नयरीइ निउणलोया परेहि न पराइया कइया ॥ २१५ ॥ तत्थ य समत्थि राया, राया इव सुयणकुमुयकयहरिसो। ईसाणचंदनामो नामियनीसेसपडिवक्खो ॥ २१६ ॥ तह तत्थ अस्थि तुंगो सीलसुगंधो सुवित्तसच्छाओ । चंदणदासो सिट्ठी सुसीयलो चंदणदुम्मु ॥ २१७॥ तस्स सुओ उजुसीलो पियवओ दाणविणयसीलडो | गरुयाण माणणिजो सारगचंदु त्ति नामेण ॥२१८॥ सो अण्णदिणे केण वि कज्जेण गओ निवस्स अत्थाणे । तेण वि य गउरवेणं निवेसिओ नियसमीवम्मि ॥ २१९ ॥ अह विष्णत्तो राया नमिडं उज्जाणपालएणेवं । संपइ पहु ! वणलच्छी १ चंद्र इव । For Private and Personal Use Only रयणत्तयस्सरूवप्परूवग नाम दसमुद्देसो । 11 28 11
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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