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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६ मज्झ किं उविरिं? ॥५॥ता पक्खरेह तुरया गुडह गइंदा भडा वि सण्णहह । अप्फालह रणतूरे सत्थाई करेह पउणाई ॥६॥ इय हयगयरहभडओहपरिगओ सण्णहेवि जियसत्तू । वेलाउलम्मि पत्तो रणरहसुच्छलियहलेबोलो ॥७॥ तं सण्णद्धं दर्दू निवसुया भणइ सिद्धि! किं एयं । दीसइ हयगयरहभडसमाउलं उयहितीरम्मि?॥८॥तो भणइ उसमदत्तो सुदंसणे! एस लाडदेसपहू । दीसइ जियसत्तुनिवो जिणधम्मधुरंधरो धीरो ॥९॥ करुणामयरसखीरोदहिव संवेगचित्तभित्तिब । सुविवेयरयणसुनिहित्व पसमतरुसिसिरच्छायव ॥१०॥ तिक्खकरवालदारियरिउगयकुंभत्थलुच्छलंतेहिं । मुत्ताहलेहिं हारो जेण कओ सुरजुवाणीणं ॥१॥ है। अविय-परपरिवायविमुक्को परदोसाऽऽयण्णणे वि बहिरुव । जम्मंधो परमहिलाऽवलोयणे जो खलु महप्पा ॥१२॥ एसो जियसत्तुनियो तुह पिउणो चंदउत्तरायस्स । निवसइ सया ससंको जाणइ किं एस संपत्तो ? ॥१३॥ तेणेसो तुह जयतूरगहिरघोसं सुणेवि सण्णद्धो। दीसइ इह संपत्तो रणरसियभडोहपरियरिओ॥१४॥ तवयणमुणियकजाइ जंपियं सिद्धिसंमुहं तीए । साहसु तं गंतूण वुत्तमिमं ति निवस्स लहुं ॥१५॥ लद्धाऽऽएसो सिट्ठी एगम्मि खरकुयम्मि चडिऊणं । अप्पाणं पय तो पत्तो जियसत्तुपयमूले ॥१६॥ दूराउ कयपणामो साहइ आगमणकारणं जाव । रायसुयाए सिट्टी ता पत्तो पवहणसमूहो ॥१७॥ तो निजामयवयणेणं को विनियपवणं पडिखलइ । अण्णो खंचेइ सिदं अण्णो संवरइ हरिणीओ ॥१८॥ अण्णो उण लोहमयं अहोमुहं खिवइ नंगरं झत्ति । अहवा णु लोहमइओ गरुओ वि अहोमुहं पडइ ॥१९॥ किजंतमंगल १ रहस० रभस-औत्सुक्य । २ हरूबोल० कोलाहल । ३ सुरयुवतीनाम् । ४ लघुनीकायाम् । For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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