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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ASHLEEARR पालणकए सणिझं वियरउ अवस्सं ॥१२८५।। इय सावियम्मि सीले समागया जलहिदेवया खिप्पं । पञ्चक्खी होऊणं लाभणइ तयं देहिलं वणियं ॥१२८६॥रे मूढ ! दुदृचिट्ठिय! भइणिसमं पिच्छिऊण जइ एयं । अप्पसि पइणो ता तुज्झ जीवियं अण्णहा नत्थि ॥१२८७॥ इय देवयाइ वयणं आगासगयाइ देहिलो सोउं । भइणिं व पणमइ तयं तहत्ति पडिवज्जियं वयणं ॥१२८८॥ तप्पभिई भयभीओ भोयणपाणाइएहिं भइणिं व । पालितो गंतवं संपत्तो वंछियं ठाणं ॥१२८९॥ विणियहिऊण तत्तो विढवियदविणो गिहं पइ नियत्तो । पवणवसा से वहणं पत्तं जयवद्धणपुरम्मि ॥१२९०॥ उत्तारिऊण पणियं वणिओ। कात्तूिण पाहुडं पवरं । वच्चइ निवस्स पासे तेणाऽवि सगोरवं दिट्ठो॥१२९१॥ दीवंतरवत्ताकहणवावडाणं परुप्परं महई । वेला| लग्गा जावं वोलीणो जामिणीपहरो ॥१२९२॥ तो देहिलेण भणियं बहुदवं देव! पवहणं मज्झ । ता मुयह ममं पुणरवि IN समागमिस्सं पहायम्मि ॥१२९३॥ भवियवयानिओगेण भूवई भणइ भद्द ! भवउ ह । पच्चइयनियनरेहिं रक्खाविस्सामि तं वहणं ॥१२९४॥ तं पुण इहेव चिट्ठसु एवं होउ त्ति मन्निए वणिणा । नरवइणा पेसविया पहाणपुरिसा पवहणम्मि ॥१२९५।। अणुकूलकम्मवसओ कुमरा कयकोउया जलहिवहणे । जणयं सप्पणयं विण्णवेंति वालग्गहग्गहिया ॥१२९६॥ पवहणमदि पुवं ति ताय ! तइंसणत्थमम्हे वि । वच्चामु त्ति तओ ते वि पेसिया तेहि सह रण्णा ॥१२९७॥ रयणीइ ते पसुत्ता तत्थेव जय पवहणम्मि सिज्जाए। जाए य चरिमे जामे पडिबुद्धो भणइ लहुभाया॥१२९८॥भाउय! मह कहसु तुम अच्छेरकर कहाविणयं किं पि । वच्चइ सुहेण रयणी जेणेसा तं सुणंतस्स ॥१२९९॥ जिडेण तओ भणियं महंतमच्छेरयावहमपुवं । अम्हाण मेव चरियं सुणसु तुमं किं च अवरेण ? ॥१३००॥ आमंति तेण वुत्ते जिट्ठोभाया कहेइ वुत्तंतं । नियनयरिनिग्गमाओ हरिया सुदंस०१३ ING For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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