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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दुवारे । भणइ इमो लोयठिइं न कुणह निंदह ममं च तुमे ॥ ८४३|| तो भणइ गुरू अम्हं अतिहीण न कप्पए इमं काउं । निंदामो न य किंचिवि नरनाह ! तुमं विसेसेण ॥ ८४४ || सो भणइ न मे कज्जं तुमेहि तो मुयह मह लहुं देसं । जइ सत्तदिणाणुवरिं ठाहिस्सह तो हणिस्सामि ॥८४५॥ अह भणइ गुरू मुणिणो समत्थि लद्धीसमत्थया जस्स । सो संपयं पउंजइ लद्धीणं अवसरो एसो ॥ ८४६ ॥ मुणिणो भणति छचरिससहसतवजायलद्धिसामत्थो । भयवं ! विण्हुकुमारो इकुचिय समुच्चिओ इत्थ ॥८४७॥ गुरुणा भणियं को तं आणिस्सइ ? तो मुणी भणइ एगो । गंतुं समत्थि सत्ती भयवं ! मह तत्थ नाऽऽगंतुं ||८४८|| तो गुरुणा सो भणिओ वच्छ ! तुमं गच्छ सो तमाणेही । तो सो खणेण पत्तो उप्पइओ मेरुगिरिसिहरे ॥८४९ ॥ वि वि तयं दहुं चिंतइ नणु संघकज्जमावडियं । जंपर इमो वि इहई महामुणी वरिसकाले वि ॥८५०॥ अह तेण बंदिऊणं विण्डुस्स निवेइयं तयं कज्जं । विण्हु वि तयं घित्तुं खणेण पत्तो गुरुसमीवे ॥ ८५१ ॥ भणिओ गुरूहिं सो वच्छ ! जह तुमं मुणसि तह इमं कुणसु । अह सो साहूहिं समं पत्तो निवमंदिरे बिहू ||८५२ ॥ सामंतमंतिमाईहिं वंदिओ सो विणा ! | नमुइमिक्कं । तो तस्स विण्डुमुणिणा मउयगिरा साहिओ धम्मो ॥८५३ ॥ भणियं च इमे मुणिणो तुह नयरे संठिया उ चउमासे । ता चिद्वंतु इहं चिय विहरित्तु न कप्पइ जमिहि ॥ ८५४ ॥ किं च इमे पुवनिवेहि पूइया भरहसगरमाईहिं । जं पालितो समणे तवछट्ठेसं लहइ राया ॥८५५ ॥ जियबाहुला इण्हेिं विहरंति न भिक्खवित्तिणो किं च । वित्ते वरिसावत्ते सयमवि जाहिंति अण्णत्थ ॥ ८५६ ॥ इय महुरनिउणवयणेहि विण्हुणा पभणिओ वि सो नमुई । न मुयइ नियकुग्गाहं | १ भर इत्यपि । २ अतीते । For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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