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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra सुदंसणाचरियम्मि ॥ ५२ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुमरंतो सूरिपयकमलं ॥ ६८० || निसिसुत्तो पच्चूसे पिक्खइ सुमिणम्मि किर मए सहसा । दर्रनिष्कण्णफलेगा छिण्णा सुरतरुसिहा पडिया || ६८२ ॥ तत्थेव पुणो लग्गा निष्फण्णफला विसेससोहिला । इय दहुं पडिबुद्धो संखो पच्चूससंखरवा ||६८२ ॥ चिंतइ पहिट्ठचित्तो सह गुरुवयणेण संवयइ सुमिणो । पयडत्थो य धुवं ता देवी पुत्तो य लहु मिलि ॥६८३॥ अह अत्थाणनिसण्णो दत्तं सदाविडं कहिय सवं । भणइ वणे लहु गंतुं सयं गवेसेहि तं देविं ॥ ६८४॥ तत्तो दत्तो खिष्पं पत्तो रण्णे तयं गवेसंतो । दहुं तावसमेगं पुच्छिय तं आसमम्मि गओ || ६८५ ।। कुलवइसहिओ दत्तो संपत्तो तावसीण मज्झम्मि । सो नियइ तत्थ देविं सिरिं व पण्णसुयकलियं ॥ ६८६ ॥ दण दत्तमह सा निरुद्धकंठं पेरोविया धणियं । कोडिगुणं पिव जायइ दुक्खं खलु परिचिए दिट्ठे || ६८७|| धीरत्तणेण धरियं पि हिययरुद्धं दुहं अइमहंतं । रोयंतीए तीए झडित्ति दत्तग्गओ वमियं ॥ ६८८ ॥ आसासिया य सहसा दत्तेण वि मंथरं रुयंतेण । मा कुणसु भइणि ! खेयं एसो खलु कम्मपरिणामो ॥ ६८९ ॥ अणुभूयं सुयणु ! तए सबं अच्चंतदारुणं दुक्खं । इत्तो वि अनंतगुणं रण्णा वि अओ निमित्ताओ ॥ ६९० || संपइ पच्छायावी इच्छइ सो साहिउं खलु हुयासं । अज्जेव जइ न पिच्छइ तुह वयणं जीवमाणीए || ६९१ ॥ ता मुयसु मण्णुमहुणा कालक्खेवो वि खमइ नो इत्थ । आरुह रहवरमेयं एवं चिय संपयं सेयं ॥ ६९२ ॥ कयनिच्छयं नरिंदं नाउं गमणुस्सुया इमा जाया । पडिकूलस्स वि पइणो हियमेव मणं कुलवणं ॥ ६९३ ॥ आपुच्छिऊण तत्तो कुलवइमह रहबरं समारूढा । पत्ता य पैओसे नयरबाहिरे पत्थिवाऽऽवासे || ६९४ || संपुण्णतणुं दइयं दहुं गरुयं हरिसवहंतो वि । लज्जोनामि१ दर अर्द्ध । २ प्ररुदिता । ३ प्रदोषे - संध्याकाले । For Private and Personal Use Only विजयकु मारसरूव प्परूवग नाम अट्ठ मुद्देसो | ॥ ५२ ॥
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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