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दाता दरिद्रः कृपणो धनाढयः,पापी चिरायुः सुकृती गतायुः। कुलीनदास्यं ह्यकुलीनराज्यं,कलौ युगे षद् गुणमावहन्ति।४३॥ यह दस प्रकार के कल्पवृक्ष होते है। मत्तंगा भिंगंगा, तुडिअंगा दीवसिह जोइसिहा । चित्तंगा चित्तरसा, मणिभंगा गेहागारा अणिगा य ॥४४॥ देव की अपेक्षा मनुष्य जन्म अच्छा है ।
देवा विसयपसत्ता, नेरइया विविहदुक्खसंतत्ता ।
तिरिमा विवेगविगला, मणुभाणं धम्मसामग्गी ॥४॥ धन के सिवाय सब नक्कमा है। जातियतु रसातलं गुणगणस्तस्याप्यधो गच्छतां, शीलं शैलतटात्पतत्वभिजनः संदह्यतां वह्निना । शौर्ये वैरिणि वज्रमाशु निपतत्वर्थोऽस्तु नः केवलं, येनकेन विना गुणास्तृणलवप्रायाः समस्ता इमे ॥ ४६ ॥ पुण्य के चिह्न ।
कुंकुम कजल केवडो भोजन कूरकपूर ।
कामिनी कंचन कप्पडां एह पुण्य अंकूर ।। ४७ ॥ भाग्य से ज्यादा कोई नहीं देता । भाग्याधिकं नैव नृपो ददाति, तुष्टोऽपि वित्तं खलु याचकस्य । रात्री दिवा वर्षतु वारिधारा,तथापि पत्रत्रितयं पलाशे॥४८॥
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