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गारियं पव्वतिते, संजमबहुले संवरबहुले जाव उवहाणवं दुक्खक्खवे तवस्सी, तस्स णं तहप्पगारे तवे भवति तहप्पगारा वेयणा भवति, तहप्पगारे पुरिसजाते निरुद्धणं परितातेणं सिज्झति जाव अंतं करेति जहासे गतसूमाले अणगारे, दोच्चा अंतकिरिया २, अहावरा तच्चा अंतकिरिया, महाकम्मे पच्चायाते यावि भवति, से णं मुंडे भवित्ता अगारातो अणगारियं पव्वतिते, जहा दोच्चा, नवरं | दीहेणं परितातेणं सिज्झति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करेति, जहा से सणंकुमारे राया चाउरंतचक्क
वट्टी तच्चा अंतकिरिया ३, अहावरा चउत्था अंतकिरिया अप्पकम्मपञ्चायाते यावि भवति, से णं मुंडे | भवित्ता जाव पव्वतिते संजमबहले जाव तस्स णं णो तहप्पगारे तवे भवति णो तहप्पगारा वेयणा
भवति, तहप्पगारे पुरिसजाए णिरुद्धणं परितातेण सिज्झति जाव सव्वदुवखाणमंतं करेति,जहासा मरुदेवा भगवती, चउत्था अंतकिरिया ४ । सू० २३५ ___ मूलार्थः-चार अंतक्रियाओ-भवनो अंत करनारी कहेली छे, ते आ प्रमाणे-' खलु' शब्द वाक्यालंकारमा छे. पहेली अंतक्रिया अल्पकर्मप्रत्यायात-अल्प कमेने लीधे देवलोकथी च्यवी मनुष्य भवने पामेल ते यावत् मुंड थई, घरथी (नीकलीने) अनगारपणाने प्राप्त थयेल, पृथ्वी आदिनी रक्षारूप बहुल (अधिक) संयमवाळो, आश्रवना निरोधरूप अधिक
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