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४ स्थानकाध्ययने उद्देशः ४ तरककुम्भ| समपुरुषाः
श्रीस्था
तृतीय गंभीर छ अने तथाप्रकरना स्थानना आश्रितपणा विगेरेथी उत्ताननी माफक देखाय छे, [चतुर्थ गंभीर अने गंभीर नागपत्र
माफक देखाय छ ] (३) पुरुष तो उत्तान-तुच्छ अने उत्तान ज देखाय छ-आ एक, बीजो तुच्छ छे पण विकारने गोपववाथी पानुवाद
गंभीर जेबो देखाय छे, तृतीय गंभीर छ पण कारणवशात् विकारत्वने देखाडवाथी तुच्छ जेबो देखाय छे, चोथो सुगम छे. (४) ॥५३२॥
वे उदकसूत्रनी माफक बे उदधिसूत्र पण हाष्टातिक सहित समजवा अथवा एक उदधि-समुद्रनो देश छीछरो होवाथी उत्तान-प्रथम अने पछी पण छे केम के मनुप्यक्षेत्रनी बहारना समुद्रोने विषे वेलनो अभाव होय छे, आ एक, बीजा तो प्रथम
उत्तान अने पछी गंभीर-वेलना आववाथी, त्रीजो प्रथम गंभीर अने पछी बेलना चाल्या जबाथी उत्तान छे, चोथो सुगम छ. | (५-८) (सू० ३५८ ) समुद्रना प्रस्तावथी तेना तरनाराओनुं वर्णन वे सूत्रवडे करे छे
__ चत्तारि तरगा पं० त०-समुदं तरामीतेगे समुदं तरइ, समुदं तरामीतेगे गोप्पतं तरति, गो|| पतं तरामीतेगे०४ (१) चत्तारि तरगा पं० तं०-समुदं तरित्ता नाममेगे समुद्दे विसीतते, समुदं
तरता णाममेगे गोप्पते विसीतति. गोपति०४ (२) सू० ३५९, चत्तारि कुंभा पं० तं०-पुन्ने नाममेगे पुन्ने, पुन्ने नाममेगे तुच्छे, तुच्छे णाममेगे पुन्ने, तुच्छे नाममेगे तुच्छे (१) एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पं० त०-पुन्ने नाममेगे पुन्ने०४ (२) चत्तारि कुंभा पं० तं०-पुन्ने नाममेगे पुन्नोभासी,
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॥५३२॥
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