SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 406
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie ४ स्थानकाध्ययने उद्देशः ४ तरककुम्भ| समपुरुषाः श्रीस्था तृतीय गंभीर छ अने तथाप्रकरना स्थानना आश्रितपणा विगेरेथी उत्ताननी माफक देखाय छे, [चतुर्थ गंभीर अने गंभीर नागपत्र माफक देखाय छ ] (३) पुरुष तो उत्तान-तुच्छ अने उत्तान ज देखाय छ-आ एक, बीजो तुच्छ छे पण विकारने गोपववाथी पानुवाद गंभीर जेबो देखाय छे, तृतीय गंभीर छ पण कारणवशात् विकारत्वने देखाडवाथी तुच्छ जेबो देखाय छे, चोथो सुगम छे. (४) ॥५३२॥ वे उदकसूत्रनी माफक बे उदधिसूत्र पण हाष्टातिक सहित समजवा अथवा एक उदधि-समुद्रनो देश छीछरो होवाथी उत्तान-प्रथम अने पछी पण छे केम के मनुप्यक्षेत्रनी बहारना समुद्रोने विषे वेलनो अभाव होय छे, आ एक, बीजा तो प्रथम उत्तान अने पछी गंभीर-वेलना आववाथी, त्रीजो प्रथम गंभीर अने पछी बेलना चाल्या जबाथी उत्तान छे, चोथो सुगम छ. | (५-८) (सू० ३५८ ) समुद्रना प्रस्तावथी तेना तरनाराओनुं वर्णन वे सूत्रवडे करे छे __ चत्तारि तरगा पं० त०-समुदं तरामीतेगे समुदं तरइ, समुदं तरामीतेगे गोप्पतं तरति, गो|| पतं तरामीतेगे०४ (१) चत्तारि तरगा पं० तं०-समुदं तरित्ता नाममेगे समुद्दे विसीतते, समुदं तरता णाममेगे गोप्पते विसीतति. गोपति०४ (२) सू० ३५९, चत्तारि कुंभा पं० तं०-पुन्ने नाममेगे पुन्ने, पुन्ने नाममेगे तुच्छे, तुच्छे णाममेगे पुन्ने, तुच्छे नाममेगे तुच्छे (१) एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पं० त०-पुन्ने नाममेगे पुन्ने०४ (२) चत्तारि कुंभा पं० तं०-पुन्ने नाममेगे पुन्नोभासी, xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx) XXXXXXXXXXXXXXXXXXXX ॥५३२॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy