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अने परसमयने जाणनार तथा क्रियादि गुणयुक्त छे ते सारतर होवाथी त्रीजा करंडक समान छे अने जे आचार्य समस्त आचार्यना (छत्रीश छत्रीशी) गुणोथी युक्त तीर्थकर सदृश छे ते चतुर्थ करडंक समान छे-सुधर्मादिवत् सारतम होवाथी. (१७) कोईक शाळ नामना वृक्षनी जातियुक्त होवाथी शाल छे अने शालना ज पर्यायो-बहुलछायापणुं, सेववापणुं विगेरे धर्मों छे जेने ते शालपर्याय-आ एक, कोईक नामथी पूर्ववत् शाल पण एरंडनाज पर्यायो-अबहुल (अल्प छाया पणु, अमेववा योग्यपणुं विगेरे धर्मों के जेने ते एरंडपर्याय-आ बीजो, कोईक एरंडनामा वृक्षनी जातिवाळो होवाथी एरंड नाननो छे पण शालपर्याय-बहुलछायात्व विगेरे धर्मयुक्त होय छे आ बीजो, कोईक एरंडनामा वृक्ष पूर्ववत् अने एरंडपर्याय -अल्प छायापणुं विगरे एरंडना धर्मयुक्त होय छे-आ चतुर्थ. (१८) आचार्य तो शालनी जेम शाल जातिवाळो छ सेम आचार्य पण सुकुलीन अने सद्गुरुकुलवाळो छे ते शाल ज कहेबाय छे. तथा शालपर्याय-शालना धर्मवाळो छे. जेम शाल छाया विगेरे धर्म सहित छ तेम जे आचार्य ज्ञान अने क्रियाथी थयेल यशः विगेरे गुणोयुक्त होय छे ते शालपर्याय कहेवाय छे-आ एक, तथा एक आचार्य पूर्ववत् शाल छे अने पूर्वोक्तथी विपरीत होवाथी एरंडपर्यायवाळो छे-आ बीजो. तृतीय अने चतुर्थ भंग पण एवी रीते समजवा. (१९) तथा पूर्व प्रमाणे ज शाल अने शालरूप ज परिवार छ जेनो ते शालपरिवार, एवी रीते शेष त्रण भंग जाणवा. (२०) आचार्य तो शालनी जेम गुरुकुल अने श्रुतादिवडे उत्तम होवाथी शाल छ अने शाल समान महानुभाव साधुना परिवारथी शाल परिवारवाळो छ, तथा (बीजो) एरंड तुल्य निर्गुण साधुना परिवारथी एरंड परिवारवाळो छे तथा त्रीजो श्रुतादिवडे हीनपणाथी आचार्य एरंड जेबो छे अने चोथो तो सुज्ञात छे. उक्त चतुर्भगीवडे ज भावना माटे
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