________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
विभक्ति कहेली छे अथवा धारयन्ति परिभुञ्जते च आवी रीते प्रत्ययना फेरफारवडे क्रियानुं अनुस्मरण करवाथी द्वितीया विभक्ति ज थाय छे, ते पछेडीना विषयमां पहेली (बे हाथना विस्तारखाळी ) उपाश्रयमां ओढवा योग्य छे. त्रण हाथना | विस्तारवाळी वे पछेडी पैकी एक गोचरी जवामां, बीजी स्थंडिलभूमि जवामां अने चोथी समवसरणमां. कछु छे केसंघाओ चउरो, तत्थ दुहत्था उवसयंमि । दुन्नि तिहत्थायामा, भिक्खट्ठा एग एग उच्चारे ॥४॥ ओसरणे चउहत्था, निसन्नपच्छायणी मसिणा ।
साध्वीओने चार संघाटीओ कल्पे छे, तेमां वे हाथना विस्तारवाळी उपाश्रयमां ओढवा माटे, त्रण हाथनी पहोळाईवाळी पछेडी पैकी एक मिक्षाने अर्थे अने एक उच्चार ( वडीनित ) जवामां आ सर्व पछेडीओ लंबाईमां साडात्रण हाथ अथवा चार हाथनी जोईए. एने ओढया सिवाय क्यारे पण खुल्ले शरीरे रहेवुं नहिं. समवसरणमां चार हाथना विस्तारवाळी अने चार हाथी लांबी पछेडी ओढवी कल्पे, केम के समवसरणमां साध्वीओए ऊभा रहेवुं जोईए, तेओ थी बेसाय नहिं माटे समस्त अंगने ढांकवा वास्ते पछेडी मोटी जेईए. आ चारे पछेडीओ देहने ढांकवा माटे तथा श्लाघादिने माटे ओढाय छे (४) (मू० २४६) नारकपणुं ध्यानविशेषथी होय छे अने ध्यानविशेष माटे ज संघाटिका विगेरेनुं ग्रहण छे, ए हेतुथी ध्याननुं वर्णन करे छे.
* 'धारितए वा परिहरित्तए वा, धारयितुम् परिहरिहत्तुम् ' अहि तुम् प्रत्ययने बदले धारयन्ति परिभुञ्जते आ क्रियापद लीघेल छे.
For Private and Personal Use Only
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
*****