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भीस्था
नाङ्गपत्र सानुबाद ॥४९३ ॥
४ स्थानकाध्ययने उद्देशः३
आहरणभेदाः सू० ३३८।।
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बोल्यो के-शुं हुंचक्रवर्ती नथी ? मारे पण हस्ति विगेरे चक्रवर्ती समान रत्नो छे. स्वामीए कह्यु के-तारी पासे बीजां रत्नो अने निधानो नथी. त्यारे कृत्रिम रत्नो बनावीने भरतक्षेत्र साधवाने प्रवृत्त थयेल ते कोणिक, कृतमाल नामना यक्षबडे तमिस्रा गुफाना द्वार पासे मरायो अने उही नरकमां गयो. ४ 'निस्सावयणे' त्तिनिश्रावडे जे बचन ते निश्रावचन. कोइ पण शिसुर्घ्यने अवलंबीने बीजाने बोध करवा माटे जे वचन ते निश्रावचन छे. ते जमां विधेयपणाए कहेवाय छे ते आहरणनिश्रावचन छ, विनयसंपन्न अन्य शिष्यने अवलंबीने नहि सहन करनार शिष्यो प्रत्ये किंचित् कहे. जेम गौतमस्वामीने आश्रर्याने भगवाने कहल छ तेम. ते आ प्रमाणे-दीक्षित तापसादिने केवळज्ञाननी उत्पत्ति थये छते अने पोताने केवळज्ञाननी उत्पत्ति न थवाथी अधैर्यवाळा गौतमने (भगवाने कयुं के) गौतम ! तुं घणा काळथी (स्नेहवडे) संश्लिष्ट (जोडायलो) छे, चिरकाळनो परिचित छे, तुं अधैर्य न कर इत्यादि वचनना समूहवडे अनुशासन करनार भगवानद्वारा बीजाओ पण अनुशासन कराया. वळी तेमना बोध माटे द्रुमपत्रक नामर्नु अध्ययन कहेल छे. कयु छ के-"पुच्छाए कोणिए खलु, निस्सावयणमि गोयमस्सामि"पूछवामां कोणिक राजार्नु अने निश्रावचनमां श्रीगौतमस्वामीनुं उदाहरण छे. त्रीजुं तद्देशोदाहरण व्याख्यान करायु, हवे तद्दोषउदाहरण- व्याख्यान कराय छ-ते चार प्रकारे छे. १'अहम्मजुत्ते' त्ति० कोईक अर्थन साधवा माटे जे उदाहरण केवळ पापना कथनरूप कहेवाय छे, जेना कहेवाथी प्रतिपाद्य-श्राताने अधर्मनी बुद्धि उत्पन्न थाय छे ते अधर्मयुक्त उदाहरण. ते आ प्रमाणे-नलदामकोलिकनी जेम उपायवड़े कार्योंने करवा. तेनी कथा कहे छ-स्वपुत्रने करडनार मकोडानी शोध
* उत्तराध्ययन सूत्रनुं दशमुं अध्ययन.
KOKKOKOOKKKXXXKXXXXXKKKKKKKKAK.
४९३॥
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